अंग्रेजी मीडिया के मुताबिक, पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रोहित अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से ताल्लुक नहीं रखता था। मानव संसाधन मंत्रालय ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के पूर्व न्यायधीश ए.के. रूपनवाल के नेतृत्व में एक पैनल का गठन किया था। पैनल ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूसीजी) को अगस्त के पहले सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौंपी हैं।
रिपोर्ट में जो बात सामने निकलकर आई है वहीं बात पहले केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज और थावरचंद गहलोत भी कह चुके थे। दोनों ही मंत्रियों ने कहा था कि रोहित अनुसूचित जाति से नहीं बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से था और तब रोहित की जाति वाडेरा बताई गई थी। इस आत्महत्या को तनाव पैदा करने के लिए जातिगत भेदभाव के एक मुद्दे के रूप में वापमंथियों ने पेश किया, जिसके चलते देश में असंतोष पनपा। उल्लेखनीय है कि भारत में हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा पिछड़ा वर्ग है जो सामाजिक विकास की दौड़ में अपनी ही सवर्ण जातियों से पिछड़ गया था। दलित होना और पिछड़ा होना दोनों अलग-अलग है।
इस केस में रोहित की जाति का साफ होना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय और हैदराबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर अप्पा राव का नाम भी एफआईआर में शामिल है। दोनों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत एक एफआईआर भी दर्ज हुई है। इस बारे में जब जांच दल के मुखिया रूपनवाल से जब अंग्रेजी मीडिया ने प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने रिपोर्ट सौंपने से इनकार नहीं किया और कहा, 'मैं आपके सवालों का जवाब नहीं दे सकता और आगे की जानकारी प्रशासन ही आपको देगा।'
वहीं मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'इस मुद्दे पर आपको मुझसे ज्यादा जानकारी है। मैं पिछले पांच दिन से शहर से बाहर हूं और मैंने अभी तक रिपोर्ट नहीं देखी है। शायद यह रिपोर्ट यूजीसी को सौंप दी गयी हो। मैं इसे देखकर ही कोई जानकारी दे पाऊंगा।'
वहीं रोहित के भाई राजा ने जांच पैनल की इस टिप्पणी को खारिज करते हुए कहा है, 'हम दलितों की तरह रहते हैं, हमारा पालन-पोषण दलित समुदाय में हुआ है। हां, मेरे पिता अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते थे, लेकिन जो भी हो हम इतना जानते हैं कि हम दलितों की तरह रहे हैं। हम सभी को जीवन में भेदभाव का सामना करना पड़ा है। इस बात का जिक्र रोहित ने अपने खत में भी किया था।