पिछले साल मेक इन इंडिया का बड़ा शोर था। एक साल बाद इंडिया इंक ने अपनी अपेक्षाओं को कुछ हद तक संयमित कर लिया है। ऐसा मानते हुए, मानो हम सभी एक बड़े ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम का हिस्सा हों, स्टार्ट अप (नव उद्यम) को लेकर फैले शोर से हम क्या अर्थ निकाल सकते हैं? इसके बुलबुला साबित होने के बारे में कहे जाने वाली चंद आवाजों को परे रख दें तो अधिकांश लोग इससे सहमत हैं कि एक नई लहर तो है। इसका उद्योगों और देश के बिजनेस स्कूलों पर बड़ा प्रभाव है।
कॉरपोरेट की नौकरियों से स्टार्ट अप की ओर हो रहे इस बदलाव से जुड़े आवेग का एक बड़ा हिस्सा बी-स्कूलों से ही आ रहा है। यह नए आइडिया का बड़ा ब्रह्मांड है और उद्योग जगत में बड़ी मात्रा में नई ऊर्जा आती दिख रही है। इस नई घटना को मदद मिल रही है आसानी से उपलब्ध मार्गदर्शन और हाथ थाम कर चलने वाले विशेषज्ञों से और सबसे महत्वपूर्ण, वित्तीय मदद, मिल रही है वेंचर पूंजीपतियों और फरिश्ता समान निवेशकों से जो किसी भी नए, अछूते विचार या आइडिया का समर्थन करने के लिए हमेशा तैयार हैं। शुक्र है कि बिजनेस स्कूल इस पूरे घटनाक्रम को लेकर जागरूक हैं क्योंकि नए कारोबारियों की मदद करने के लिए अधिकतर संस्थानों ने अपने पाठ्यचर्या में उद्यमिता को शामिल किया है।
इस पृष्ठभूमि में आउटलुक देश के शीर्ष 100 बिजनेस स्कूलों की अपनी सालाना रैंकिंग (अपने रिसर्च साझेदार दृष्टि स्ट्रैटजिक रिसर्च सर्विस के साथ मिलकर) प्रस्तुत कर रहा है। पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी शीर्ष 15 की सूची में कोई चौंकाने वाला नाम नहीं है। हां कुछ मामूली फेरबदल जरूर है। असली उठा पटक बीच की रैंकिंग में है जहां कुछ कॉलेजों ने पैमानों को ऊपर उठाकर अपनी स्थिति सुधारी है। उठापटक निचले लेवल पर भी जारी है जहां कई नए नामों ने आउटलुक की इस वर्ष की रैंकिंग में जगह बनाई है।
एक और चीज देखने में यह आई है कि कॉलेज ने कुल मिलाकर अंकीय स्थिति सुधारी है। यह पिछले वर्ष शुरू हुआ ट्रेंड है जिसमें अधिकांश कॉलेज मिलकर अपनी व्यवस्था सुधारने में जुटे हैं। पिछले साल हमारी रैंकिंग में कॉलेजों की बड़ी भागीदारी को देखते हुए हमने शीर्ष 75 के बजाय शीर्ष 100 कॉलेजों की सूची जारी की थी। इस वर्ष भी अच्छी भागीदारी को देखते हुए हमने इस संख्या को बरकरार रखा है।
स्टार्ट अप या नव उद्यम के प्रति इस उत्साह को देखते हुए आउटलुक नए उद्यम को स्थापित करने के लिए मार्ग निर्देशिका प्रस्तुत कर रहा है। इसके अलावा निजी क्षेत्र में आरक्षण पर भी एक आलेख है। एक ऐसे वातावरण को देखते हुए जहां बी-स्कूलों के सामने नई चुनौतियां हैं, हम इस पर नजर टिकाए हैं कि इंडस्ट्री की लगातार बदलती मांगों की गति से वह कैसे कदम मिलाकर चल पाते हैं। नव उद्यम कक्षाओं के नियम पुनर्परिभाषित कर रहे हैं और बी-स्कूल भी बदल रहे हैं। इसी प्रकार कॉरपोरेट सेक्टर जहां लगातार चर्चा में हैं वहीं हम यह भी देखते हैं कि निजी क्षेत्र में आरक्षण का मुद्दा कैसे पूरी तरह मर गया है।दरअसल, इस स्टार्ट अप के खेल में कई विफलताएं भी हैं। इसी प्रकार यह मॉडल काम करता है। मगर क्या भारतीय इसके लिए तैयार हैं? बी-स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्र इस जोखिम को भली भांति समझते हैं। उम्मीद है हमारी रैंकिंग दाखिले में आपकी मददगार होगी। हमेशा की तरह, समझदारी से चुनें।
आउटलुक-दृष्टि बी-स्कूल
सर्वे 2015 की पद्धति
भारत के सर्वश्रेष्ठ बी-स्कूलों की रैंकिंग के लिए दृष्टि स्ट्रेटजिक रिसर्च सर्विसेज (दृष्टि) ने बी-स्कूलों, नियोञ्चताओं, शिक्षकों और छात्रों सहित सभी भागीदारों को शामिल करते हुए विस्तृत और सख्त पद्धति अपनाई है। सबसे पहले बी-स्कूलों की एक व्यापक देशव्यापी सूची बनाई गई। दो वर्षीय पूर्णकालिक प्रबंधन पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाले और किसी सरकारी निकाय जैसे एआईसीटीई, एनएएसी, एआईयू से कम से कम पांच वर्ष पहले मान्यता प्राप्त और जिनके कम से कम तीन बैच एमबीए कर चुके हैं, ऐसे बी-स्कूलों को इस सूची में शामिल किया गया।
जिन मानकों और उप-मानकों को ध्यान में रखा उन्हें विशेषज्ञों की राय और उन्हें आवंटित अंकों के आधार पर तय किया गया। अनुरूपता और तुलनात्मकता बनाए रखने के लिए मानकों और उप-मानकों की सूची पिछले वर्ष की तरह ही रखी गई है मगर इनक्यूबेशन सेंटर, उद्यमिता केंद्र, प्रबंधन विकास कार्यक्रमों और औसत वेतन आदि पर इस बार ज्यादा जोर दिया गया। साथ ही शोध सुविधाओं और इंडस्ट्री एक्सपोजर पर भी ध्यान थोड़ा बढ़ाया गया।
देश भर के कई कॉलेजों से इस रैंकिंग में भागीदारी के लिए संपर्क किया गया जिनमें से 130 ने जवाब भेजा और तय समयसीमा में अपने उद्देश्यपरक आंकड़े पेश किए। इनमें 24 ऐसे संस्थान भी शामिल हैं जिन्होंने पिछले वर्ष भागीदारी नहीं की थी।
14 शहरों (दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, भुवनेश्वर, रांची, भोपाल और इंदौर) के सभी मुख्य प्रतिभागियों के बीच प्रत्यक्ष सर्वे की मदद से वस्तुनिष्ठ सर्वे किया गया। एक तीव्र गति सर्वे प्लेटफॉर्म इन्फोमोंस्टा पर प्रश्नावली आधारित सर्वे किया गया जिससे दृष्टि के शोधार्थियों को विभिन्न बी-स्कूलों के 518 अनुभवी स्थायी शिक्षकों और एमबीए/पीजीडीएम अंतिम वर्ष के छात्रों तक पहुंचने में मदद मिली। छात्रों से कहा गया कि अपने संस्थान के बारे में वे अलग से एक प्रश्नावली भरें ताकि अपने संस्थान के बारे में उनके विचार पता चल सकें। इसके अलावा विभिन्न कंपनियों के 237 एचआर अधिकारियों से भी बात की गई। प्रामाणिकता को सुनिश्चित करने के लिए ऑडिट की व्यवस्था भी बनाई गई। इसमें संस्थानों द्वारा दिए गए आंकड़ों का भौतिक सत्यापन भी शामिल था।
दृष्टि के शोधकर्ताओं ने 40 संस्थानों का दौरा कर उनके द्वारा मुहैया कराए गए डाटा का भौतिक सत्यापन किया। जिन कॉलेजों के डाटा संदिग्ध लगे उन्हें इस पूरी प्रक्रिया से हटा दिया गया।
इसके बाद कुल वस्तुनिष्ठ प्राप्तांक जानने के लिए इसमें वस्तुनिष्ठ चरण के पांच मानकों के अंकों को शामिल किया गया। नियोक्ताओं/उद्योग प्रोफेशनल्स, शिक्षकों और छात्रों के आकलनों को क्रमश: 40, 30 और 30 फीसद महत्व देते हुए बोधात्मक रैंकिंग की गई। निर्णायक मिश्रित अंक पाने के लिए कुल बोधात्मक और वस्तुनिष्ठ अंकों को 50-50 प्रतिशत का समान महत्व दिया गया। यही कुल अंक अंतिम रैंकिंग तय करने के लिए इस्तेमाल किए गए।
(दृष्टि की टीम में मुकुंद गिरि, व्योमा शाह, एंजेला एस. कल्लौर, आयुष खेतान, श्रेया सुरेश और जेनी मेहता शामिल थे।)