दोनों अधिकारियों ने सुपरटेक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश भी की है। सुपरटेक ने यह खत 2011 में भेजा था और इसके जरिए उसे टाउनशिप में ओपन एरिया के लिए ग्राउंड कवरेज क्षेत्र बढ़ाने की अनुमति मिल गई। इस विस्तार के बाद उसने 730 प्लॉट और विला लगभग 343 करोड़ रुपये में बेच दिए। जब 2015 में सुपरटेक ने काम पूरा होने का सर्टिफिकेट मांगा तब यमुना एक्सप्रेस-वे के दो सीईओ संतोष यादव और अनिल गर्ग ने बताया कि बिल्डिंग प्लान फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बदला गया। सुपरटेक अपकंट्री में 28 टावर बनने थे। प्रत्येक टावर में 120 रेजिडेंसियल फ्लैट, 948 विला और प्लॉट थे। कंपनी की वेबसाइट के अनुसार यह सभी बिक चुके हैं। सुपरटेक को जून 2010 में यमुना एक्सप्रेस-वे के पास 100 एकड़ अलॉट की गई थी। उसी साल अगस्त में यह रजिस्टर हो गई। यमुना एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी के तत्कालीन सीईओ मोहिंदर सिंह ने टाउनशिप के प्लान को मंजूरी दे दी। लेकिन 2011 में एक खत आया, यह खत उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव आलोक कुमार के नाम से था। इसमें नए नियमों के अनुसार टाउनशिप बनाने का जिक्र किया गया। हालांकि 2015 में जांच में सामने आया कि यूपी सरकार ने ऐसा कोई खत नहीं भेजा था और यह फर्जी था।
इसके बाद सुपरटेक की टाउनशिप का प्लान कैंसल कर दिया गया। साथ ही एफआईआर दर्ज करने के लिए कानूनी राय भी ली जा रही है। गौरतलब है कि सुपरटेक पहली बार विवादों में नहीं आया है। अप्रैल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा सेक्टर 93ए में एमरल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में बने 857 रेजिडेंसियल फ्लैट के दो टावरों को गिराने का आदेश दिया था। ये टावर नियमों को ताक पर रखकर बनाए गए थे।