आरटीआई के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्ववर्ती यूपीए सरकार और मोदी सरकार ने पिछले साल उदारतापूर्वक धन आवंटित किया गया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष के दौरान इसमें भारी कटौती देखने को मिली है। पुणे स्थित आरटीआई कार्यकर्ता विहार धुर्वे के आवेदन के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि 2008-09 में इस पारदर्शिता कानून को प्रोत्साहित करने के अभियान में विज्ञापन एवं प्रचार मद में 7.30 करोड़ रूपया खर्च किए गए जबकि 2009-10 में इस उद्देश्य के लिए 10.31 करोड़ रूपये, 2010-11 में 6.66 करोड़ रूपये खर्च किए गए थे।
2011-12 में आरटीआई के प्रचार-प्रसार पर सर्वाधिक 16.72 करोड़ रूपये हुए जबकि 2012-13 में 11.64 करोड़ और 2013-14 में 12.99 करोड़ रूपये खर्च हुए। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राजग के शासनकाल के दौरान आरटीआई के प्रचार पर 2014-15 में 8.75 करोड़ रूपये खर्च किए गए जबकि चालू वित्त वर्ष में सिर्फ 1.67 करोड़ रूपये खर्च किए गए हैं।