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एक पत्रकार जो फिल्म की कहानी बन गया

गरीबी और भ्रष्टाचार को कैमरे से कैद करने वाला एक युवा पत्रकार खुद फिल्म की कहानी बन गया। वह छोटे-छोटे सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार और गरीबी पर वीडियो बना उन्हें इंटरनेट पर लोड कर देता। उसकी कहानियां वाशिंगटन डीसी के लॉयरेल ग्वीज डेक और ग्रेगरी वॉल्स ने देखी तो उसपर फिल्म बनाने के लिए भारत आ पहुंचे। फिल्म लगभग तैयार है।
एक पत्रकार जो फिल्म की कहानी बन गया

 

कौन है यह

यहां बात हो रही है झारखंड के देवघर जिले के रहने वाले दलित समुदाय के 22 वर्षीय मुकेश रजक की। किसी के पास अगर अपनी असफलता के पीछे का तर्क यह है कि उसे माकूल पारिवारिक माहौल नहीं मिला तो मुकेश उसके मुंह पर तमाचे की तरह है। मुकेश देवघर के छोटे से गांव जगदीशपुर का रहने वाला है लेकिन एक घटना ने अपनी सफलता की इबारत खुद लिखने वाले इस लड़के को सलाखों के पीछे डाल दिया। वहां भी उसने हार नहीं मानी। पत्रकार के रूप में व्यवस्था के खिलाफ सच्चाई जनता तक पहुंचाने के लिए वह लड़ा और लड़ रहा है।     

 

सौतेली मां

दो साल का था रजत जब उसकी मां उसे छोड़ अपने मायके चली गई। वह बताता है ‘सौतेली मां ने हर तरह का जुल्म किया। पापा बाहर काम पर चले जाते तो वह मुझे रोटी नहीं देती थी। वह खुद बाहर से मंगवा कर खा लेती। मैं भूखा रहा जाता।’ मुकेश बताता है कि जब वह नवीं जमात में आ गया तो उसकी मां और पिता का दबाव था कि वह पढ़ाई छोड़कर काम करे।

समुदाय पत्रकार के रूप में काम

मुकेश जिस स्कूल में पढ़ता था वहां की निदेशक इंदिरा दास गुप्ता को जब यह पता लगा तो उसने उसे पढ़ाई जारी रखने के लिए कहा। उसकी सहायता भी की। रजत के चाचा-चाची ने भी उसे सहयोग किया। वह कहता है ‘मैं बस इतना चाहता था कि किसी तरह पढ़ाई पूरी हो जाए और मैं इस व्यवस्था से बाहर जाऊं।’ दसवीं करने के बाद रजत को आईटीआई सिविल करने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई। उसकी लगन देखकर इंदिरा दास गुप्ता ने उसे वीडियो वॉलंटियर (वीवी) के लिए आवेदन करने के लिए कहा। वह कहता है कि उसने वीवी के लिए आवेदन किया। मन लगाकर काम सीखा।

 

एक के बाद एक रिपोर्ट

फिर उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुकेश ने पहला वीडियो टोकरी बुनने वालों पर बनाया। वक्त के साथ-साथ उसके वीडियोज में परिपक्वता और पैनापन आता गया। उसने अलग-अलग विभागों में एक के बाद एक आरटीआई लगा वीडियो स्टोरीज करनी शुरू की। समुदाय पत्रकार के तौर पर मुकेश के वीडियो कई टीवी चैनल्स पर भी चले। वह गांव-गांव, बस्ती-बस्ती रिपोर्टिंग करने लगा। कभी उसने दिखाया कि कैसे टीचर छात्रों से चाक के पैसे मंगवाते हैं तो कभी दिखाया कि कई सालों से एक स्कूल बंद पड़ा है। कहीं जमींदार पानी नहीं दे रहा तो कहीं किसी ने सरकारी नल पर कब्जा कर लिया है।  

मुकेश पर एफआईआर

उसकी जिंदगी में सबसे अहम मोड़ उस समय आया जब उसने मनरेगा के सिलसिले में 8 मई 2012 को एक आरटीआई लगाई। इसके तहत रजत ने जानकारी मांगी कि मनरेगा के सिलसिले में जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ है। उसके अनुसार रोजगार सेविका वदंना कुमारी के भाई ने 12 मई को फोन पर उसे धमकाया। तेरह मई को मुकेश को किसी ने फोन करके खबर दी कि वंदना कुमारी उसके खिलाफ एफआईआर करवाने की कोशिश कर रही है कि मुकेश ने एक खबर की एवज में उससे 5,000 रुपये मांगे, उसे थप्पड़ मारा और उसकी सोने की चेन छीन ली।

जारी है कानूनी लड़ाई

ऐसे में मुकेश ने अपने स्तर पर तहकीकात की। मुकेश का कहना है कि मैंने पता लगवाया कि जिस दिन मुझपर एफआईआर हुई उस दिन वंदना कुमारी मधुपुरा में थी ही नहीं। वह मधुपुरा से 125 किमी दूर दुमका गई हुई थी। पता लगा कि वह वहां से रेगुलर बीएड का कोर्स कर रही है। मुकेश ने अपनी सूझबूझ से वंदना कुमारी की वहां की हाजिरी निकलवाई। मुकेश ने उसकी एडमीशन की रसीद, नामांकन, क्रमांक सब अपने पास जमा किए। उसका कहना है कि दुमका में रहते हुए कोई कोई एफआईआर कैसे करवा सकता है। फिर एक रात मुकेश को उसके घर से पुलिस उठाकर ले गई। हालांकि वंदना का बीएड से नाम तो कट गया लेकिन मुकेश को कई रातें जेल में गुजारनी पड़ी। अब वह जमानत पर है और पुनः अपना काम शुरू कर चुका है लेकिन रांची उच्च न्यायालय में केस जारी हैं। 

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