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‘आप’ ने कर दिया कमाल

सचमुच नया इतिहास बन गया। यही तो आकांक्षा रही थी-अरविंद केजरीवाल की। किसी भी मुख्यमंत्री को केवल डेढ़ वर्ष में अपनी ही आधी कैबिनेट को बर्खास्त नहीं करना पड़ा। वह भी गंभीर अपराध और चरित्र हीनता के कारण।
‘आप’ ने कर दिया कमाल

जबकि अण्‍णा हजारे के कंधों पर बैठकर राजनीति में कूदकर आम आदमी पार्टी के संस्थापक केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले जनता के सामने दावा किया था कि ईमानदार, चरित्रवान, कर्मठ, समर्पित उम्मीदवारों को साथ रखकर वह दिल्ली का कायाकल्प कर देंगे। जनता ने उन पर भरोसा किया और 70 में से 67 सीटों पर उन्हें विजय दिला दी। कुछ ही महीनों में पोल खुलनी शुरू हुई, तो एक तिहाई विधायक आरोपों की जंजीरों में फंसे दिखने लगे। केजरीवाल अपनी हर समस्या के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उप राज्यपाल नजीब जंग को जिम्मेदार बताकर अपनी हंसी उड़वाते रहते हैं। अब उनका परमप्रिय मंत्री रंगरेलियां करते पकड़ा गया, तो इसके लिए भी वह भाजपा और उपराज्यपाल को उत्तरदायी ठहरायंगे? इससे पहले एक मंत्री पर घूसखोरी के प्रमाण आ गए, तो उसे हटाए बिना केजरीवाल साहब अपनी टोपी कैसे पहने रह सकते थे? एक मंत्री सड़क पर विदेशी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करता रहा और उसकी पत्नी तक प्रताड़ित किए जाने के गंभीर प्रमाणों सहित पुलिस में चली गई, तो मिस्टर 'क्लीन’ की सरकार में सोमनाथ के सिर पर मुकुट कैसे रह सकता था? दिल्ली की जनता ने केजरीवाल के मंत्री संदीप कुमार को सर्वाधिक मतों से विजयी बनाया था। 'आप’ के राजा ने उसे महिला-बाल कल्याण विभाग सौंपा था। इसलिए उसे रंगरेलियों के जरिये ही महिला कल्याण का कार्यक्रम जारी रखना ठीक लगा। शिकायतकर्ता ने रंगरेलियों की सीडी और फोटो राज दरबार में 10 दिन पहले ही पहुंचा दी थी। सरकार को पंजाब-गोवा के चुनावी हिसाब-किताब से शायद फुर्सत नहीं मिली या सोचा गया कि जब किस्सा सार्वजनिक होगा, तो सिर कलम करने से अपनी ताकत दिखाने का अवसर मिलेगा। मंत्री गड़बड़ करते रहे, उसकी सजा क्या पद से हटना पर्याप्त है? जब सरकार की 'महान’ सफलताओं के झूठे प्रचार पर करोड़ों रुपया बहाया जा सकता है, तो विफलता और कालिख का पश्चाताप कौन करेगा? अदालत, चुनाव आयोग, केंद्र सरकार की एक भी बात न सुनना लोकतांत्रिक नेता की पहचान बनेगी या तानाशाह की?

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