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एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर पलटवार की तैयारी

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय ने सरकार के खिलाफ कवायद तेज कर दी है। गौरतलब है कि हाल ही में एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने के मामले में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह हाईकोर्ट के उस फैसले को मानती है, जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इंकार किया गया था।
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर पलटवार की तैयारी

 सरकार एएमयू के मसले पर सियासी रोटियां न सेके

राज्यसभा के पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब का कहना है कि जो अदारे अल्पसंख्यकों ने बनाएं हैं वहां उनके समुदाय के बच्चों का 50 फीसदी आरक्षण होता है। अदीब ने बताया ‘सर सईय्यद अहमद खान ने इसकी नींव रखी थी। कौम के लोगों ने चंदा दिया था। वर्ष 1920 में इसकी डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मिलती थी। उस समय ब्रिटिश संसद से गुजारिश की गई कि एएमयू की डिग्री को मान्यता दी जाए। जिसकी एवज में ब्रिटिश संसद ने 5 लाख रुपये और चंद एकड़ जमीन की मांग की। एएमयू ने ब्रिटिश संसद को 5 लाख रुपये की बजाय 38 लाख रुपये और 600 एकड़ जमीन दी। तब कहीं जाकर 1920 में इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का दर्जा मिला लेकिन आज इसका अल्पसंख्यक दर्जा हमसे छीन लिया गया है।‘

अदीब के अनुसार एएमयू से पढ़े लोग दुनिया के हर कोने में हैं। उन्हें इक्ट्ठा किया जा रहा है। यहां तक कि इस मसले पर बहुत से गैर मुसलमान भी मुसलमानों के साथ हैं। सरकार से एएमयू हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगा दी जाएगी।      

 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावारात के पूर्व सचिव इलियास मलिक का कहना है कि एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा छीनने को हिंदू-मुसलमान का मुद्दा न माना जाए। यह संविधान से जुड़ा मुद्दा है लोकतंत्र से जुड़ा मुद्दा है। सरकार इसके जरिये ध्रुवीकरण कर रही है और राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहती है।

 

क्या है मसला

साल 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इंकार कर दिया था। तब एएमयू ने देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि उस समय यूपीए सरकार एएमयू के साथ खड़ी थी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार की अब इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है। सरकार हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करती है। यह मामला पहले भी अदालत में आया था। अजीज बाशा का यह मामला 1968 में सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंचा था। तब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि विश्वविद्यालय केंद्रीय विधायिका द्वारा स्थापित किया गया है और इसे अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं दिया जा सकता। लेकिन तब की सरकार ने इस फैसले को प्रभावहीन करते हुए 1981 में संविधान संशोधन विधेयक लाकर एएमयू को मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा दे दिया था। यह मामला यूं ही चलता रहा लेकिन जब केंद्र सरकार ने 50 फीसदी सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित करने की मांग की तो इसका विरोध शुरु हुआ और इसके खिलाफ याचिका दायर की गई।

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