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देश के नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के सामने कई चुनौतियां, कैसे करेंगे सामना?

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर कमजोर पड़ती जा रही है। अब जरूरत है कि टीकाकरण अभियान को तेज किया...
देश के नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के सामने कई चुनौतियां, कैसे करेंगे सामना?

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर कमजोर पड़ती जा रही है। अब जरूरत है कि टीकाकरण अभियान को तेज किया जाए। इससे भविष्य में किसी भी नई लहर को रोकने में मदद करेगा।

इसलिए, नए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में डॉ. हर्षवर्धन की जगह लेने वाले मनसुख मंडाविया के सामने कई चुनौतियां हैं, उनमें सबसे प्रमुख कोविड के नए वेरिएंट से आने वाले खतरे और अन्य स्वास्थ्य सेवाएं हैं।

मंत्री का पदभार संभालते हीं, मंडाविया ने तैयारियों को बढ़ाने और दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में सामने आई कमियों को दूर करने के लिए 23,123 करोड़ रुपये के कोविड पैकेज की घोषणा की।

हालांकि, देश में कई स्वास्थ्य के मुद्दों हैं। लेकिन, विशेषज्ञों ने कुछ मुद्दों को केंद्रित करते हुए कहा है कि स्वास्थ्य मंत्री को भविष्य में किसी भी महामारी की लहर से बचने और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को चालू रखने के लिए इन विषयों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। 

टीकाकरण प्रक्रिया में तेजी लाना: देश में अभी सभी के लिए टीकाकरण की नीति अपनाई गई है, जिसके तहत सरकार 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगाया जा रहा है। हालांकि, लक्षित आबादी को पूरा करने के लिए टीकाकरण की गति बहुत धीमी है। कई प्रसिद्ध स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने उन लोगों का टीकाकरण अभी स्थगित करने सुझाव दिया है जो स्वाभाविक रूप से कोविड-19 से उबर चुके हैं। हालांकि, सरकार ने ऐसे लोगों को टीकाकरण तीन महीने के लिए टालने की घोषणा की थी, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा रहा है।

संक्रामक रोग विशेषज्ञ एवं एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं, “ लगभग सभी सेरोप्रेवलेंस सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ने एंटीबॉडी विकसित कर ली है। अगर हम इन लोगों को और तीन महीने के लिए वैक्सीन लेने से रोक सकते हैं, तो हम इस दौरान बाकी कमजोर लोगों को कवर कर सकते हैं। ”

टीके की उपलब्धता में पारदर्शिता: केंद्र और राज्य अक्सर टीकों की कमी के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं। इसके अलावा, सरकार ने विभिन्न चरणों के दौरान निर्माताओं से टीकों की खरीद पर एक विरोधाभासी बयान दिया है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सुझाव है कि कोविन एप्लिकेशन या किसी अन्य प्लेटफॉर्म में वैक्सीन की स्थिति के वास्तविक समय के अपडेट के साथ एक डैशबोर्ड होना चाहिए। डैशबोर्ड में वैक्सीन निर्माण कंपनियों को दिए गए ऑर्डर, आपूर्ति की स्थिति, खपत और उपलब्ध स्टॉक जैसे विवरण होने चाहिए। उनका कहना है कि इससे देश में वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर सभी विवाद दूर हो जाएंगे।

दवा की कमी पर काबू पाना: एंटिफंगल दवा एम्फोटेरिसिन, जिसका उपयोग म्यूकोर्मिकोसिस (जिसे ब्लैक फंगस के रूप में भी जाना जाता है) के इलाज के लिए किया जाता है, अभी भी पूरे देश में इसकी आपूर्ति कम है। इसके अलावा, दूसरी लहर के दौरान रेमडेसिविर और टोसीलिज़ुमैब जैसी कई महत्वपूर्ण दवाएं भारी मांग और बेहद कम आपूर्ति की वजह से ब्लैकमार्केट में बेची गई। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इन दवाओं का बहुत अधिक भंडारण करना एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है क्योंकि ये एक्सपायरी डेट के साथ आती हैं।

स्थिति के अनुसार उत्पादन के साथ-साथ आपूर्ति को विनियमित किया जाना चाहिए ताकि ये दवाएं गलत हाथों में न पड़ें। ये कहना है इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन (आईपीए) के अध्यक्ष डॉ टी वी नारायण का। वो कहते हैं, कालाबाजारी करने वालों ने दवा का उपयोग कैसे किया, जबकि जरूरतमंद लोग दर-दर भटक रहे थे।

अनलॉक के साथ उचित कोविड प्रोटोकॉल लागू करना: कोरोना के हर दिन सक्रिय मामलों की संख्या में कमी के साथ, कई राज्यों ने अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर दी है और इसके परिणामस्वरूप भीड़ अब देखने को मिल रहा है जो कोविड -19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन हुआ है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि उचित कोविड-19 व्यवहार के लाभों के बारे में लोगों को बार-बार याद दिलाने के लिए आक्रामक अभियान से मदद मिलेगी।

डॉ पंडित कहते हैं, “अनलॉक करना महत्वपूर्ण है लेकिन कोविड-19 प्रोटोकॉल लागू होना चाहिए। मास्क, सेनेटाइजर और सामाजिक दूरी का निश्चित रूप से पालन किया जाना चाहिए।“

स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहित करना: कई विशेषज्ञों का मानना है कि देश में व्यापक शोध का अभाव है जिसके कारण अक्सर महत्वपूर्ण निर्णय अन्य देशों में किए गए अध्ययनों पर आधारित होते हैं। टीकों की दो खुराकों के बीच का अंतर बढ़ाना, टीकों के प्रतिकूल प्रभाव जैसे कुछ ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जहां व्यापक अध्ययन होना चाहिए।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आनुवंशिकी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं, “कई पायलट अध्ययनों से पता चला है कि कोविड-19 से उबरने वाले व्यक्ति के लिए एक शॉट पर्याप्त है। लेकिन, अपने देश में इस पर कोई बड़े नमूने पर अध्ययन क्यों नहीं हो रहा है? कई देशों ने ऐसे लोगों के लिए एकल खुराक टीकाकरण नीति शुरू की है।“ 

ग्रामीण और आदिवासी स्वास्थ्य पर ध्यान देना: यह एक और ऐसा क्षेत्र है जो कोविड-19 की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पोलियो, बीसीजी, हेपेटाइटिस बी आदि के लिए नियमित टीकाकरण अभियान समय पर नहीं चलाया जा रहा है क्योंकि स्वास्थ्य कार्यकर्ता कोविड -19 के टीकाकरण प्रक्रिया में व्यस्त हैं। ग्रामीण और आदिवासी आबादी में कोविड-19 टीका लेने में हिचकिचाहट की वजह से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को लोगों को आगे आने के लिए मनाना मुश्किल हो रहा है।

उत्तर प्रदेश में एक ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाली एएनएम कहती हैं, “ज्यादातर समय हम ग्रामीणों के टीके के लिए आने का इंतजार करते रहते हैं और इससे बहुत समय बर्बाद होता है। अन्य ग्रामीण स्वास्थ्य मुद्दों और बच्चों के लिए अन्य टीकाकरण कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। ”

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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