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‘रोटी कमाने वाले कायम रहें’

जिसे जिसका मांस खाना हो खाए, कोई गाय को माता माने या न माने, कोई बार-बार विदेश जाकर भारत की जैसी मर्जी महिमा मंडन करे, कोई किसी को मुल्ला कहे या पाकिस्तानी। मुसलमानों के एक बहुत बड़े वर्ग को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। ये मध्य और निम्न मध्य वर्ग के वे मुसलमान हैं जो दंगों की लपटों में झुलस जाते हैं। इस वर्ग को मतलब है तो सिर्फ इस बात से कि इन्हें दो जून की रोटी मिलती रहे और रोटी कमाने वाले कायम रहें। ये अपने गांव में रहते रहें क्योंकि दूसरी किसी जगह पर ठिकाना नहीं है। इन्हें रहने के लिए गांव छोडक़र कैंपों में न जाना पड़े। यही इनकी सबसे बड़ी फिक्र है।
‘रोटी कमाने वाले कायम रहें’

दिल्ली से 50 किलो मीटर दूर दादरी के गांव बिसाहड़ा में गोमांस खाने की अफवाह के चलते मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया। जबकि फॉरेंसिक टेस्ट में वह बकरे का गोश्त साबित हुआ। जब मंदिरों से अफवाहें और फतवे आने लगें तो मरहूम अखलाक जैसी पृष्ठभूमि वाला हर मुसलमान परिवार दहशत में जीता है। दादरी से मुजफ्फरनगर, मैनपुरी और कश्मीर गाय पर हिंसात्मक राजनीति की आग में जल रहे हैं जिसकी लपटों का सेक पूरे देश में फैल चुका है। कश्मीर में निर्दलीय विधायक इंजीनियर अब्दुल राशिद ने जब बीफ पार्टी का आयोजन किया तो भाजपा विधायकों ने विधानसभा में ही उनकी पिटाई कर दी।

 

अहम यह है कि इन घटनाओं के बाद अफवाहों के बाजार बहुत गरम है। दहशत है,जिसके लिए कोई कानून काम नहीं करता। बिसाहड़ा से सटे गांवों में जाकर देखने से पता लगता है कि उत्तर प्रदेश में कई बिसाहड़ा बन चुके हैं। बेशक वहां हिंदू लोग मुसलमान बेटियों की शादी में शरीक हो रहे हों लेकिन यह काफी नहीं है। बिसाहड़ा गांव के वासी तो वैसे भी अखलाक के परिवार को अकेला कर देना चाहते हैं। गांव में राजपूत महिलाओं ने हमें बताया ‘अरे आप बताओ आखिर क्यों 50 मुसलमानों में अकेला अखलाक ही मारा, गलती पर मारा । उसे बाकी मुसलमानों से किसी गलती पर अलग किया।’

 

बिसाहड़ा का सेक बिसाहड़ा जितना ही पूरे इलाके में है। बिश्नौली गांव के खां साहब बताते हैं ‘पहले गांव में अगर हमें कोई बोल देता था कि तुम नमस्ते नहीं करते तो हम भी हंसी-मजाक में बोल देते थे कि हां भई नहीं करते। लेकिन अब हम बोलते हैं कि भई कहो तो फोन पर भी सुबह नमस्ते बोल दिया करेंगे।‘ सरताज मिर्जा बताते हैं कि उनके साथ के पढ़ने वाले लड़के अब उनसे बात नहीं करते। पहले फोन करके बाकायदा मिलना होता था। लेकिन अब सामने पड़ जाएं तो रूखा सा दुआ सलाम हो जाता है। वह कहते हैं ‘ वैसे कोशिश रहती है कि दुआ-सलाम न ही हो। अफवाहें जिस तरह का रूप ले रही हैं उसमें कहा-सुनी से बचने के लिए अब काम से लौटकर अपने घर आने की जल्दी रहती है।‘ मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मोहम्मद आजाद सैफी का कहना है कि सबसे खतरनाक यह हो रहा है कि पहले संघ गांवों में नहीं था, अब संघ ने गांवों में घुसपैठ की है। हिंदू कट्टरपंथी सोच के लिए एक वर्ग ने अपने पूरे घोड़े खोल दिए हैं। सैफी का कहना है कि सरकार की सोच इसी से पता लगती है कि जब उनकी पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी बिसाहड़ा अखलाक के घर पहुंचे उसके आधे घंटे बाद स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा बिसाहड़ा पहुंच गए। उससे पहले वह चुप बैठे थे। यही नहीं समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान अखलाक के बेटे दानिश को नोएडा के कैलाश अस्पताल इसलिए देखने नहीं पहुंचे कि यह अस्पताल महेश शर्मा का है। आजम खां दानिश को यहां से कहीं और शिफ्ट करवाना चाहते थे।

 

यानी कि दहशत के साये में जी रहे लोगों और अपना सब खो चुके लोगों के हालचाल जानने पर भी राजनीति। यही हाल पास के गांव दूजाणा का है। एक मियां जी बताते हैं अब तो ऐसा माहौल हो गया है कि मानो ये लोग हमसे कह रहे हों कि भागो यहां से। एक दफा तो उनके बच्चों की स्कूल में हूटिंग तक हो गई। हालांकि मियां जी का कहना है कि पुरानी पीढ़ी अभी भी पहले जैसी ही है लेकिन नई पीढ़ी के आगे उनकी एक नहीं चल रही। एक मुस्लिम नौजवान का कहना है कि अब यह हाल है कि अगर इनका कोई लड़का उनसे उम्र में छोटा भी है तो उसे वे चाचा बोलते हैं। भारत-पाकिस्तान मैच के वक्त तो हालात ये होते हैं कि गलती से अगर वे चौपाल पर चले गए और पाकिस्तानी टीम रन पर रन बना रही हो तो बोलेंगे कि देख-देख इसके चेहरे की लाली देख। गांव के मुसलमान लडक़ों को पाकिस्तान टीम बना देते हैं।   

 

कुछ साल पहले बिसाहड़ा के पास मसूरी ढासणा गांव में कुरान को लेकर हिंसा में 12 लोग मारे गए थे। रसूलपुर गांव के राजपूत लड़कों का कहना है कि बिसाहड़ा में मसूरी ढासणा का बदला पूरा हो गया। अखलाक के परवार को मिले मुआवजे पर ये लोग बहुत गुस्सा हैं। कहते हैं कि सीमा पर हमारा जवान शहीद हो तो पाकिस्तान में जश्न मनाया जाता है और बवाल में मुसलमान मरे तो 45 लाख रुपये मुआवजा। इन लड़कों का कहना है कोई भी गाय काटेगा तो ऐसा ही होगा। हालांकि गाय काटे जाने का कोई सुबूत नहीं है और मुसलमान तथा पाकिस्तान को एक कर देना गलत क्योंकि भारत सहित मुसलमान कई देशों में हैं। यहां ज्यादातर राजपूतों और गूजरों के गांव हैं। इस इलाके के राजपूत कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमानों के खिलाफ वे गुजरों को भी अपने साथ मिला लिया जाए।

 

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