सुरेश प्रभु भले ट्वीट से लोगों की मदद कर देते हों और रेलवे में बड़े बदलावों का दावा करते हों लेकिन उनके दावों की सच्चाई संसद में पेश हुई सीएजी की रिपोर्ट से पता चलती है। असल में सीएजी ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है।
देश के 74 रेलवे स्टेशनों और 80 ट्रेनों का ऑडिट करने के बाद ये नतीजा सीएजी ने निकाला है। शुक्रवार को संसद में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि खाना कई जगह खराब मिला। ऑडिट में पाया गया कि ट्रेनों और स्टेशनों, कहीं भी साफ-सफाई नहीं रखी जा रही है। एक्सपायर हो चुकी चीजें बिक रही हैं। रिपोर्ट में लिखा है, 'खाने की चीजें तयशुदा मात्रा से कम मात्रा में बेची जा रही थीं। अनाधिकृत कंपनियों के डिब्बाबंद पानी की बोतलें बेची जा रही थीं।' इस बात का भी जिक्र है कि रेलवे परिसरों में ओपन मार्केट की तुलना में ज्यादा कीमत पर चीजें बेची जा रही थीं।
ऑडिट रिपोर्ट में लिखा है, 'पेय पदार्थों को तैयार करने के लिए नल से सीधे अशुद्ध पानी लेकर इस्तेमाल किया जा रहा था। कूड़ेदान ढके नहीं हुए थे और उनकी नियमित अंतराल पर सफाई नहीं हो रही थी। खाने की चीजों को मक्खी, कीड़ों और धूल से बचाने के लिए उन्हें ढककर नहीं रखा जा रहा था। इसके अलावा ट्रेनों में चूहे, कॉकरोच पाए गए।' सीएजी और रेलवे की टीम के जायजा लेने के दौरान किसी भी वेटर, कैटरिंग मैनेजरों के पास कोई मेन्यू कार्ड नहीं था और न ही उनसे जुड़ा को रेट कार्ड था।
ऑडिट रिपोर्ट में रेलवे में बार-बार बदलती कैटरिंग योजना पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, योजना में बार-बार बदलाव करने से यात्रियों को कैटरिंग सेवा मुहैया कराने वाले मैनेजमेंट पर अनिश्चिततता का माहौल छाया हुआ है। इसके अलावा, यह भी लिखा है कि भारतीय रेल प्रशासन जरूरी बेस किचन, ऑटोमैटिक वेंडिंग मशीनें जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने में नाकाम रहा है। रिपोर्ट में लिखा है, 'सात रेलवे जोन्स में कैटरिंग सर्विस के लिए प्रावधानों का ब्लूप्रिंट ही नहीं तैयार किया गया।'