न्यायालय के इस निर्णय के बाद जाट समुदाय के एक प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री ने कानून के दायरे में ही इस का समाधान खोजने का प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया था।
जाट समुदाय के नेताओं की प्रधानमंत्री से मुलाकात के एक सप्ताह के भीतर ही केन्द्र ने शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की है।
अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह ने बताया कि पुनर्विचार याचिका कल दाखिल की गयी है।
पुनर्विचार याचिका में कहा गया है, किसी भी समुदाय को आरक्षण मुहैया कराने का केंद्र का अधिकार राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की सिफारिश पर निर्भर नहीं है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशें सामान्यतया सरकार के लिये बाध्यकारी हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि जाटों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन के निर्धारण के बारे में मंडल फैसले में निर्धारित पैमाने का पालन किया गया है।
जाटों को केन्द्रीय अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल करने का निर्णय विभिन्न राज्य समितियों की रिपोर्ट में आरक्षण का समर्थन किये जाने के आधार पर किया गया है।
इससे पहले, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन ने जाटों को नौ राज्यों में आरक्षण का लाभ देने संबंधी चार मार्च, 2014 की अधिसूचना 17 मार्च को निरस्त कर दी थी। न्यायालय ने कहा था कि आरक्षण का लाभ सिर्फ अत्यधिक जरूरतमंद को ही दिया जाना चाहिए।