इसी तरह जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, सूरीनाम सहित विभिन्न देशों के छात्र-छात्राओं ने गीत-संगीत पेश कर जताया कि उन्हें हिंदी और भारत से कितना लगाव है। विदेशी छात्रों के लिए हिंदी लेखन की प्रतियोगिताओं के पुरस्कार विदेश मंत्री के हाथों से दिलवाए गए। समारोह में हिंदी भाषा पर अच्छा अधिकार रखने वाले रूसी राजदूत अलेकजेंडर मिखालोविच स्वयं उपस्थित थे। श्रीमती स्वराज ने बताया कि जब भी कोई विदेशी नेता, राजनयिक या प्रतिनिधि अपनी भाषा फ्रेंच, चीनी, जापानी, स्पेनिस इत्यादि में बात करते हैं, तो वह स्वयं दुभाषिये के जरिये केवल हिंदी में बात करती हैं। पिछले दो वर्षों में उन्होंने और प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में ही भाषण दिया।
ऐसे सद्प्रयासों के बीच जरा असलियत पर भी नजर डालें। विश्व में हिंदी के शंखनाद की इच्छा रखने वाली सरकार के सूचनातंत्र ने 'विश्व हिंदी दिवस’ पर कितना ध्यान दिया। विदेश मंत्रालय के इस कार्यक्रम में विभाग से संबंधित एक सचिव और सयुंक्त सचिव के अलावा कोई वर्तमान या पूर्व राजनयिक अथवा शिक्षा से जुड़े मानव संसाधन विकास मंत्रालय, गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग, सूचना-प्रसारण मंत्रालय के किसी अधिकारी की उपस्थिति नहीं थी। हिंदी प्रदेशों से राज्यसभा के केवल दो कांग्रेसी सांसद सत्यनारायण जटिया और राजीव शुक्ला अवश्य पहुंचे।
पराकाष्ठा यह है कि भारत और दुनिया में भारत की छवि बनाने के लिए सरकारी बजट पर निर्भर रहने वाले दूरदर्शन ने विदेश मंत्री के भाषण और विदेशी युवाओं के प्रभावशाली कार्यक्रम की कोई रिपोर्ट प्रसारित नहीं की। यहां तक कि दूरदर्शन समाचार की वेबसाइट पर भी इस कार्यक्रम की सूचना नहीं मिली। महान दूरदर्शन ने तो उसी दिन उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी और नोबेल विजेता भारत में वैज्ञानिक वेंकटरमण रामकृष्ण के महत्वपूर्ण संबोधन से जुड़े कार्यक्रम पर विशेष ध्यान नहीं दिया। सवाल यह है कि अपने देश में सौतेला व्यवहार रहने पर हिंदी की ज्ञान गंगा दुनिया भर में पहुंचाने का सपना कैसे सफल होगा?