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चर्चाः बराक ने दिखाया भारत को रंग | आलोक मेहता

बराक ओबामा और नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन बैठकों के फोटो इस तरह प्रचारित हुए, जैसे उनकी तरह के मित्र दुनिया में नहीं हैं। लेकिन परमाणु सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए नरेंद्र भाई के ‘फ्रेंड’ बराक ने अमेरिकी राष्‍ट्रपति के रूप में एक बार फिर भारत को पाकिस्तान की श्रेणी में खड़ा कर दिया।
चर्चाः बराक ने दिखाया भारत को रंग | आलोक मेहता

बराक ओबामा ने कहा कि ‘भारत और पाकिस्तान दोनों को इस उप महाद्वीप में गंभीर परमाणु खतरे को कम करने के ‌लिए काम करना होगा। दोनों देशों को सुनि‌श्चित करना होगा कि उनकी सैन्य रणनीति गलत दिशा में नहीं बढ़ रही है।’ अमेरिका पहले भी भारत और पाकिस्तान को समान तराजू पर तौलने की कोशिश करता रहा है। यही नहीं पाकिस्तान को अत्याधुनिक हथियार और लड़ाकू विमानों के साथ आर्थिक सहायता भी देता रहा है। जबकि भारत ने कई बार उसका ध्यान इन प्रामाणिक तथ्यों की ओर दिलाया है कि पाकिस्तान इन हथियारों और वित्तीय मदद का दुरुपयोग भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों में करता है। यही नहीं चीन की सहायता से परमाणु हथियार बनाता रहा है। जब अमेरिका परमाणु हथियार आतंकवादियों के हाथों में पहुंचने की आशंका व्यक्त करता है, भारत सदा इस बात पर चिंता जताता रहा है। बराक ओबामा इस साल राष्‍ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने से पहले भारत के साथ दूरगामी सामरिक समझौते का आग्रह भी हर बैठक एवं राजदूतों के जरिये करते रहे हैं। इन सामरिक समझौते से संपूर्ण एशिया में भारत ही अमेरिका का सबसे बड़ा साझेदार बन सकता है। मतलब यह कि वह भारत को चीन के विरुद्ध खड़ा करना चाहता है और तनाव की परिस्थितियों में भारतीय जमीन और सेनाओं के सहयोग का लिखित वायदा चाहता है। पिछले 68 वर्षों में 1962 के चीन के युद्ध और दो दशकों तक तनाव के बावजूद भारत ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ सामरिक संधि नहीं की और धीरे-धीरे रूस, अमेरिका, चीन के साथ विभिन्न स्तरों पर संबंधों को संतुलित किया। भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार आने के बाद अमेरिका ने भारत को चीन से टकराने के लिए तैयार करने के अभियान को तेज किया है। अमेरिका हथियारों के बड़े सौदों के साथ सैन्य अभ्यास, समुद्री सीमाओं में गश्त और सुरक्षा संबंधी गुप्‍त सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहयोग चाहता है। कुछ कदम आगे भी बढ़ चुके हैं। आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत दुनिया के अन्य देशों के साथ अमेरिका के समर्थन का आग्रह करता रहा है। लेकिन अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के बराबर बनाए रखने के साथ भारत को चीन के विरुद्ध मोहरा बनाना भारत के दूरगामी सामरिक हितों के लिए बहुत खतरनाक साबित होगा। सवाल केवल ओबामा के शासनकाल का नहीं है। पड़ोसी चीन से दूरी बनाकर रंग बदलते रहने वाले अमेरिका की गोदी में बैठना भारत को बहुत महंगा पड़ सकता है।

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