पहले कुछ विदेशी बैंकों पर ऐसे आरोप सामने आए थे। लेकिन अब तो एक के बाद एक कई भारतीय बैंकों के नाम सामने आने लगे हैं, जिससे साबित होता है कि घोटालेबाजों को दिया गया कर्ज और ब्याज तक हजम हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भी ओडिशा में सक्रिय कुछ बड़ी कंपनियों द्वारा वर्षों से कर नहीं चुकाए जाने की स्थिति पर तीखी टिप्पणी की है। आंध्र, कर्नाटक, झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, केरल जैसे राज्यों में भी ऐसे मामले विचाराधीन हैं। करों या कर्ज चुकाने के मामले में प्रभावशाली लोग और उनकी कंपनियां येन-केन प्रकारेण विभागों या अदालतों में अपील करके वर्षों तक बकाया नहीं चुका रहे हैं। बड़े व्यावसायिक-औद्योगिक समूह कई कंपनियां बना लेते हैं और एक कंपनी का धन चतुराई से दूसरी कंपनी में डाल देते हैं। फिर कर्ज लेने वाली कंपनी में भारी घाटा और दिवालिया तक दिखाकर राहत मांगने लगते हैं। इस तरह काले धन का खेल वर्षों से चलता रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि पिछले दो वर्षों के दौरान बैंकों के निदेशक मंडल के अध्यक्ष, प्रमुख सदस्यों तथा अधिकारियों पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई है। भाजपा सरकार तो बैंकों में नए निदेशक भी नियुक्त नहीं कर पाई है। भाजपा नेता कांग्रेस गठबंधन सरकार में अयोग्य और राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले लोगों को बैंक निदेशक बनाए जाने से संपूर्ण व्यवस्था को नुकसान पहुंचने का तर्क देते हैं। लेकिन ऐसे अयोग्य और भ्रष्ट लोगों पर कार्रवाई करने से सरकार को कौन रोक रहा है? स्विस बैंक के काले धन का शोर मचाने मात्र से देश को क्या मिलेगा? आस्तीन में बैठे घोटालेबाजों को कानूनी शिकंजे में लाकर जेल में क्यों नहीं रखा जा रहा है?
चर्चाः घर में काला धंधा, परदेस में तलाश | आलोक मेहता
विदेशों में पहुंचा अरबों का काला धन वापस लाने के वायदे के साथ आई सरकार विदेशों में जाल बिछाने की बातें महीनों से कर रही है। लेकिन ललित मोदी, विजय माल्या, सुब्रत राय ही नहीं पचीसों लोगों ने बैंकों, सेबी, आयकर, कस्टम्स को चूना लगाकर अरबों रुपया अंदर बाहर किया है।
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