ब्रिटेन में यूरोपीय समुदाय से अलग होने के जनमत संग्रह के परिणाम आने पर दिल्ली के परमवीर नेता अरविंद केजरीवाल ने तत्काल केंद्र शासित व्यवस्था को खत्म कर स्वच्छंद रूप से राज करने की इच्छापूर्ति के लिए दिल्ली में जनमत संग्रह कराने का ऐलान सा कर दिया। केजरीवाल सामान्यतः मांगकर नहीं जनता के कंधे पर सवार होकर छीनने में विश्वास करते हैं। कुछ साल इनकम टैक्स विभाग में रहने के कारण उन्हें छापे मारने में अधिक आनंद आता है। मुख्यमंत्री रहकर भी वह गुरिल्ला युद्ध कौशल की तरह उप राज्यपाल, प्रधानमंत्री, भाजपा और कांग्रेसी नेताओं, चुनिंदा पूंजीपतियों पर वार करते रहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी की ओर से घोषणा की गई थी कि दिल्ली के हर इलाके में जो भी सरकारी काम होंगे, मोहल्ला समितियों की बैठकों के निर्णय के आधार पर होंगे। प्रारंभिक महीनों में दो-चार बैठकें हुईं और क्षेत्र में पर्चे बांटकर लोगों की मांगें भी इकट्ठी की गईं। लेकिन फिर यह नाटक बंद हो गया और सरकारी ढर्रे पर काम जारी है।
प्रदूषण रोकने का विश्व रिकार्ड बनाने के लिए दो बार कारों का ऑड-ईवन का प्रयोग भी जनता की राय और समर्थन के नाम पर चला दिया। संभव है आने वाले महीनों में इसी तर्ज पर कुछ फैसले लागू कर दिए जाएं। यूं दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कांग्रेस-भाजपा भी करती रही हैं। लेकिन केंद्र में सत्ता में आने के बाद उन्हें प्रशासकीय एवं सुरक्षा संबंधी पेच समझ में आ जाते हैं। जरा अंदाज लगाइए, केंद्र सरकार से पूरी मुक्ति पाकर यदि पुलिस श्रीमान केजरीवाल के अधीन आ जाए और वह उप राज्यपाल की तरह देश के गृह मंत्री या प्रधानमंत्री को गिरफ्तार करने का आदेश ही जारी कर दें, तो यह महान लोकतांत्रिक भारत किस तरह की मुश्किल में फंस सकता है? पूर्ण राज्य का दर्जा लेकर वह दिल्ली आने वाले विदेशी मेहमानों की सुरक्षा व्यवस्था में कटौती का आदेश लागू कर दें या किसी इलाके में पानी-बिजली में कटौती का आदेश लागू कर दें। अपने से अहसमत मीडिया संस्थान पर ताला लगवा दें, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहां रह जाएगी? कल्पना छोड़िये, केजरीवाल जम्मू-कश्मीर या नगालैंड-मणिपुर में भी जनमत संग्रह के लिए आवाज उठाकर क्रांति की कोशिश करेंगे, तो क्या भारत में नया बवंडर खड़ा नहीं हो जाएगा?