बहरहाल, अंग्रेजी चैनल पर हिंदी में नपे तुले ढंग से विस्तार से जवाब देकर प्रधानमंत्री ने अपनी उपलब्धियों का विवरण सफलतापूर्वक दे दिया। अर्णब गोस्वामी इस समय देश के जाने माने ऐसे टी.वी. संपादक हैं, जो लगातार सीधे तीखे सवाल अपने कार्यक्रम में पूछते हैं और ऐसे अवसर भी आए हैं, जब नेता या कोई अतिथि वक्ता विचलित होकर कार्यक्रम से चले गए। यूं प्रधानमंत्री से इंटरव्यू के दौरान उतने आक्रामक तेवर अपनाना अनुचित होता और संभव है कि इंटरव्यू के लिए सहमति दिलाने वाले सलाहकारों ने ‘संयम’ की लक्ष्मण रेखा तय कर दी हो। फिर भी दर्शकों के एक वर्ग की यह अपेक्षा तो रही होगी कि प्रधानमंत्री को सांप्रदायिक दंगे भड़काने वाले उनके पार्टी के लोगों के गैर जिम्मेदाराना बयानों, मंत्रियों के कामकाज पर उठे विवादों या उनके अधिकारों में कटौती जैसी आशंकाओं-आरोपों के सवाल क्यों नहीं उठे? जवाब जैसे भी हों, सवाल से लगना चाहिए कि यह प्रायोजित शैली का कार्यक्रम नहीं है।
सबसे दिलचस्प जवाब में नरेंद्र मोदी यह दावा भी करते हैं कि वह चुनाव की राजनीतिक बातें केवल चुनाव के दौरान सोचते हैं। अन्यथा केवल देश के विकास का एजेंडा मानते हैं। कोई भी दर्शक यह कैसे मान लेगा कि 50 वर्षों से संघ-भाजपा में राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्ति राजनीति और अगले चुनाव की अपेक्षा देश-विकास की ही सोचता रहता है? अपेक्षा यह की जाती कि प्रधानमंत्री मोदी ही इंटरव्यू लेने वाले से खुलकर सवाल पूछने का आग्रह करते और बेबाकी से अपने आक्रामक अंदाज में उत्तर देते।