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चर्चा : कॉलेज परिसर में घूस का पाप। आलोक मेहता

लखनऊ के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र ने शिक्षक द्वारा रिश्वत लेने के दबाव से तंग आकर आत्महत्या कर ली। छात्र को कक्षा में उप‌स्थिति के रिकॉर्ड के आधार पर परीक्षा प्रवेश पत्र मिलने से शिक्षक रोक रहा था। छात्र ने एक बार 20 हजार रुपया दे भी दिया और घूसखोर शिक्षक ने ज्यादा रकम मांगी। ऐसी मानसिक प्रताड़ना संपूर्ण शिक्षा-व्यवस्था और शासकीय तंत्र के लिए शर्मनाक है।
चर्चा : कॉलेज परिसर में घूस का पाप। आलोक मेहता

एक युवा छात्र की आत्महत्या साधारण घटना की तरह नहीं मानी जा सकती। व्यापमं घोटाले की तरह विभिन्न राज्यों के कई स्कूलों-कॉलेजों में प्रवेश, परीक्षाओं में अंक-रैंक में गड़बड़ी, परिणाम-अंकसूची में फेरबदल जैसी स्थितियांे में छात्रों और अभिभावकों से धनराशि मांगी जाती है। यही नहीं कई स्थानों पर कुंठित, पूर्वाग्रही और लालची प्रबंधक-प्राचार्य शिक्षक छात्रों को पढ़ाने या विभिन्न गतिविधियों में प्रतिनिधित्व को लेकर पैसा वसूलने अथवा प्रताड़ित करने का हथकंडा अपनाते हैं। निजी संस्थानों में स्थिति लगातार खराब होने की वजह शिक्षा संस्थानों को धंधे की तरह इस्तेमाल करना है।

सरकारें चाहें राज्य की हों या केंद्र की, मान्यता देने में अधिक उदारता दिखाती हैं। उनके निजी या राजनीतिक आग्रह होते हैं। देशभर में राजनेताओं और उनके रिश्तेदारों ने स्कूल-कॉलेज खोले हैं। कुछ अच्छा काम कर रहे हैं और कुछ अवैध धंधे के केंद्र बन गए हैं। शिक्षा-व्यवस्था में सुधार के लिए पिछले 50 वर्षों के दौरान पचासों आयोग, समितियों का गठन हुआ। सिफारिशें धूल खाती रहीं। आज चीन और अमेरिका से बराबरी के सपने देखे जा रहे हैं, लेकिन क्या वहां शैक्षणिक संस्थानों के धंधे चल सकते हैं। अमेरिका में जब भी कोई गड़बड़ी सामने आई, कठोर कार्रवाई हुई। भारत में युवा क्रांति की आवाज उठाने वालों को भ्रष्टाचार की तरह शिक्षा क्षेत्र में अराजकता और लूट के विरूद्ध अभियान चलाना चाहिए।

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