इसे प्रदेश का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि कांग्रेस और भाजपा की सरकारें रहने के बावजूद उत्तराखंड की जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए बेचैन है। पराकाष्ठा वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता और विधायकों की खरीद-फरोख्त के प्रयासों की है। शनिवार को फिर एक सी.डी. की चर्चा टी.वी. चैनलों की सुर्खियां बन गई, जिसमें सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री द्वारा प्रलोभन और असंतुष्टों की अधूरी मांगों का आरोप सामने आया है। हरीश रावत द्वारा अपनी सरकार बचाने की कोशिश स्वाभाविक है। लेकिन इस स्थिति के लिए भाजपा का यह दावा भी हास्यास्पद है कि उसने असंतुष्टों को चारा नहीं डाला। कांग्रेस की सरकार के पतन का लाभ भाजपा के अलावा किसे मिल सकता है? सारी दुनिया देख रही है कि उत्तराखंड के असंतुष्ट नौ विधायकों का विद्रोह दलबदल कानून की परिधि में है।
कानूनी दांव-पेंच से बचाव तो हर अपराध में संभव है। फैसला अदालत और विधान सभा में ही होगा। लेकिन उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की दुर्दशा की चिंता राजनीतिक दलों की नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, आवास, सड़क की न्यूनतम सुविधाओं के वायदे दोनों पार्टियां करती रही हैं। कांग्रेस ने पिछले विधान सभा चुनाव के बाद जमीन से कटे नेता विजय बहुगुणा को जातिगत समीकरणों के आधार पर मुख्यमंत्री बनाकर बहुत बड़ी गलती की। बहुगुणा की बड़ी विफलताओं के बाद एक वर्ष पहले हरीश रावत को सत्ता सौंपी गई। उन्होंने विकास की गति तेज करने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं। नए वित्तीय वर्ष के बजट में भी कुछ जन कल्याणकारी कार्यक्रमों के प्रावधान हैं। लेकिन सत्ता और धन के लालची नेताओं के आपसी संघर्ष में उत्तराखंड के लोग मूकदर्शक की तरह आंसू बहा रहे हैं। ऐसा शर्मनाक दलबदल भारतीय लोकतंत्र के लिए कलंक के रूप में ही दर्ज होगा।