ऐसे प्रदेश में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति शासन लागू होना काले बादल से छाने वाले अंधेरे की तरह है। जो भी राजनीतिक मजबूरियां हों, लोकतंत्र के अन्य विकल्पों से स्थिरता के प्रयास किए जा सकते थे।
कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों को नहीं संभाल पाई, लेकिन विधानसभा में कांग्रेस सरकार के पतन के बाद भाजपा की केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन का हथौड़ा चला सकती थी। जम्मू-कश्मीर में तो भाजपा – पीडीपी का बहुमत है और आंतरिक मतभेद दूर नहीं होने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू है। लोकतंत्र में जन सामान्य की सबसे बड़ी ताकत चुनाव के मतदान हैं। जम्मू-कश्मीर में पिछले चुनावों के दौरान रिकार्ड तोड़ संख्या में नागरिकों ने मताधिकार का उपयोग किया। अरुणाचल, असम, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड जैसे प्रदेशों में भी भारी मतदान होता है। छोटे प्रदेश होने से राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी के साथ राजनीतिक दबाव और समस्याओं से निपटने की चुनौती होती है। इस दृष्टि केंद्र में बैठी हर सरकार का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है।
संघीय व्यवस्था को सबसे महत्वपूर्ण बताने वाली मोदी सरकार कुछ गैर भाजपाई राज्य सरकारों के साथ लगातार टकराती दिखाई देती है। नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, वीरभद्र सिंह, तरुण गोगोई जैसे मुख्यमंत्री बेहद शालीन व्यवहार के साथ केंद्र सरकार के प्रति पूरा सम्मान भी दिखाते हैं। उनका अपमान सत्तारूढ़ पार्टी का नहीं जनता का अपमान लगता है। अरविंद केजरीवाल को अवश्य अपवाद माना जा सकता है, जो प्रधानमंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल ही नहीं संवैधानिक व्यवस्था को ही ललकारते रहते हैं। फिर भी उन्हें चार साल और राज करना है। भाजपा के अनुभवी नेता, राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति केंद्र और राज्य सरकारों में बेहतर तालमेल के लिए मध्यस्थ की तरह नेक मार्गदर्शन दे सकते हैं। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी राज्य सभा के सभापति हैं और प्रदेशों से आए सांसदों का बहुमत सत्तारूढ़ भाजपा पर भारी है। परिणामस्वरूप संसद सत्र में राजनीतिक बादलों से जनहितकारी विधेयकों को भी रोशनी नहीं मिल पाती। सो, गणतंत्र दिवस पर ‘जय हिन्द’ के साथ सही अर्थों में ‘जय भारती’ के स्वर भी गूंजने चाहिए।