फिर भी पंजाब के लुधियाना की ‘साइकल’ जीत गई। मोदी सरकार द्वारा घोषित स्मार्ट सिटी योजना में लुधियाना विजयी घोषित हो गया, क्योंकि पंजाब की अकाली-भाजपा सरकार ने शहर को ‘साइकल पसंद’ नागरिकों के बल पर अव्वल बनाने का बीड़ा उठाया। पंजाब वैसे भी प्रगति और संपन्नता में आगे रहा है। ‘स्मार्ट सिटी’ बने बिना भी उसके कई शहर उत्तर प्रदेश के शहरों से अधिक विकसित हैं।
फिर भी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पिछड़े लेकिन विशाल प्रदेशों के किसी भी शहर को ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने लायक नहीं माना गया। इसे प्रशासनिक कमजोरी कहा जाए अथवा राजनीतिक पूर्वाग्रह कि अखिलेश यादव या नीतीश कुमार केंद्र की इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन से ‘स्मार्ट नेता’ का पदक न पाए जाएं? विडंबना यह है कि ‘स्मार्ट सिटी’ योजना के तहत चुने गए 100 शहरों में उत्तर प्रदेश – बिहार का कोई प्रतियोगी शहर स्थान नहीं पा सका। नई दिल्ली, अहमदाबाद, उदयपुर, चेन्नई जैसे शहरों को पहले से एक हद तक विश्व स्तरीय नहीं माना जाता? फिर भी उन्हें अति विकसित ‘वर्ल्ड सिटी’ बनाने की कोशिश होगी।
केंद्र सरकार का तर्क यह है कि पहले चरण में उन शहरों को चुना गया, जिनके लिए राज्य सरकारों के निवेश की जरूरत के हिसाब से व्यापक वित्तीय प्रस्ताव पेश किए। सवाल यह उठता है कि लोकतांत्रिक – सर्वे सुखाय सिद्धांत वाले देश में क्या अधिक धन लगा सकने वाले शहरों-राज्यों के लोगों को चौबीस घंटे पानी – बिजली- अच्छी परिवहन सुविधाएं मिलनी चाहिए ? उज्जैन, नालन्दा, राजगीर, मथुरा, अयोध्या, अजमेर जैसे प्राचीन शहरों को उसी जीर्ण-शीर्ण हालत में रखना होगा? फिर नई दिल्ली या अहमदाबाद की ‘स्मार्ट नेस’ में पैदल चलने वाले लोगों के लिए क्या गुंजाइश रहेगी? केजरीवाल सरकार की ‘एअरकंडीशन’ बसों के महंगे किराए और मोदी-पटेल राज में गरीब बस्तियों के लिए कितना खर्च होगा?
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    