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चर्चाः मीडिया को बख्‍शा नहीं जाए | आलोक मेहता

सत्ताधारियों को तलवार लटकाना बहुत अच्छा लगता है। इसी तरह मीडिया का एक वर्ग सदा यह समझता रहा है कि वह सर्वश‌िक्‍तमान है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ सत्ता को बनाने-बिगाड़ने और देश की दशा तय करने का काम कर सकता है। यह दोनों प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्‍था में अनुचित है।
चर्चाः मीडिया को बख्‍शा नहीं जाए | आलोक मेहता

अगस्ता हेलीकाप्टर खरीदी में दलाली के आरोपों के साथ मीडिया पर भी कीचड़ उछला है। आरोप लग रहा है कि मीडिया से जुड़े करीब 20 लोगों को इस हेलीकाप्टर सौदे के प्रतिकूल खबरें-टिप्पणियां न करने के लिए हर महीने लाखों रुपयों का भुगतान हुआ। आरोप की पुष्टि तो सी.बी.आई. की जांच और अदालती फैसले से ही हो सकेगी लेकिन एडीटर्स गिल्ड आफ इंडिया तथा अन्य मीडिया संस्‍थानों को स्वयं इस बात पर जोर देना चाहिए कि इस मामले को अनावश्यक ढंग से नहीं लटकाकर प्रामाणिक तथ्य सार्वज‌निक किए जाएं और उचित कानूनी कार्रवाई हो। कैसे इस खरीदी कांड में दलाली पाने वाले नेताओं-अधिकारियों के नाम प्रवर्तन निदेशालय को मिलने के दावे किए गए हैं। इस अवैध कमाई में भ्रष्‍टाचार के अपराध का प्रकरण बन रहा है। मीडिया को पटाने के लिए बांटे गए धन को कानूनी परिधि में लाकर दंडित करवाने का काम सरकारी एजेंसी ही कर सकेगी। लेकिन उनके नाम तत्काल सार्वजनिक होने चाहिए।

यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यह पहला अवसर नहीं है, जबकि मीडिया कलंकित हो रहा है। बिहार का चारा कांड हो या नीरा राडिया के लॉबिंग अभियान का मामला हो अथवा चुनावों के दौरान ‘पेड न्यूज’ की कालिख हो, मीडिया की छवि लगातार बिगड़ी है। हां, पिछले वर्षों के दौरान कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। भारतीय प्रेस परिषद में भी कोई मामला जाता है तो दोषी पाए जाने के बाद केवल भर्त्सना मात्र हो जाती है। प्रेस परिषद के पास दंडित करने का कोई अधिकार नहीं है। एडीटर्स गिल्ड में हमने लगभग दस वर्ष पहले आचार संहिता भी बनाई। तत्कालीन राष्‍ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इस आचार संहिता को रिलीज किया। इसी तरह एडीटर्स गिल्ड में यह प्रस्ताव आ चुका है कि संपादकों को भी अपनी आय-संपत्ति का विवरण देना चाहिए। लेकिन कोई भी आचार संहिता नैतिकता के आधार पर व्यक्ति स्वयं अपनाता है। स्वतंत्र और निजी क्षेत्र में सरकार किसी कानून से पत्रकारों पर थोप नहीं सकती। यह स्थिति खतरनाक है। मीडिया पर अनैतिक और दलाली के धंधे में शामिल होने के आरोपों से उसकी विश्वसनीयता कम होने लगी है। सच यह है कि आज भी देश के विभिन्न क्षेत्रों में हजारों पत्रकार ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन धंधेबाज वर्ग के कारण संपूर्ण मीडिया कठघरे में खड़ा दिखता है। समय आ गया है, जबकि दोषी मीडियाकर्मियों को बख्‍शा नहीं जाए।

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