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चर्चाः मंत्री एक, मुंह तीन | आलोक मेहता

पौराणिक कथाओं में तीन सिर वाले देवता और दस सिर वाले असुरों का उल्लेख पढ़ा-सुना जाता रहा है। अब देश के मंत्री तर्क देने लगे हैं कि वह मंत्री के रूप में एक जबान से बोलते हैं, सांसद के भेष में निर्वाचन क्षेत्र और पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में दूसरी जबान-भाषा में बोलते हैं और सामान्य नागरिक के रूप में तीसरी जबान-भाषा बोलने लगते हैं।
चर्चाः मंत्री एक, मुंह तीन | आलोक मेहता

भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा एवं ईश्वर के नाम पर शपथ लेने वाला केंद्रीय मंत्री क्या एक व्यक्ति की हत्या होने पर भारी भीड़ इकट्ठी कर उस समाज के लोगों द्वारा बदला लेने, एक का बदला सौ लोगों से लेने का आह्वान कर सकता है? क्या इस तरह के बयानों से दो संप्रदाय में नफरत के साथ हिंसा नहीं भड़केंगी? संसद में केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया के ऐसे बयानों पर हंगामा स्वाभाविक है। आगरा में विश्व हिंदू परिषद के स्‍थानीय नेता अरुण महौर की नृशंस हत्या निश्चित रूप से दुखद एवं गंभीर अपराध है। हत्यारों की गिरफ्तारी के साथ न्यायालय से कठोरतम दंड भी मिलना चाहिए। लेकिन कोई मंत्री, सांसद, पार्टी नेता अथवा सामान्य नागरिक किसी हत्या का बदला लेने के लिए एक सौ लोगों की हत्या की अपील सभाओं में नहीं कर सकता, न ही पर्चे अथवा मोबाइल-नेट आदि से ऐसा प्रचार कर सकता है। उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं पिछले महीनों में होती रही हैं। आश्चर्य यह है कि प्रदेश की समाजवादी सरकार एक तरफ सांप्रदायिकता विरोधी होने का दावा करती रही है, फिर भी समय रहते ऐसी घटनाओं और विभिन्न संगठनों की भड़काऊ सभाओं को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। केवल बयान दिए जाते हैं। प्रशासन भी अधर में लटका रहता है। देरी से कार्रवाई केवल सांप्रदायिक नेताओं को ‘हीरो’ बनाकर फूलमालाएं डलवाने के काम आती है। तभी तो आरोप लगता है कि अप्रत्यक्ष रूप से समाजवादी पार्टी और भाजपा मिली-जुली कुश्ती लड़ती हैं। ओवैसी, साक्षी महाराज या कठेरिया के बयानों से सामाजिक तनाव, हिंसा बढ़ने के साथ दुनिया भर में भारत की छवि भी बिगड़ती है। विदेशी पूंजी निवेश की इच्छुक कंपनियों के साथ प्रवासी भारतीय भी ‘धर्मसंकट’ में पड़ने लगे हैं। प्रदेश की सरकारें हों अथवा केंद्र की, सांप्रदायिक तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई संपूर्ण समाज और राष्ट्र के हित में है। 

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