निश्चित रूप से दूरगामी हितों की दृष्टि से भारत सरकार एनएसजी की सदस्यता उपयोगी और आवश्यक मानती होगी। जहां तक परमाणु ऊर्जा के लिए ईंधन की जरूरत का सवाल है, भारत को किसी तरह की कठिनाई नहीं है। समस्या एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) पर हस्ताक्षर न करने की रही है, जिसके आधार पर चीन ही नहीं, स्विटजरलैंड, न्यूजीलैंड जैसे देश भी एनएसजी की सदस्यता के मानदंड नए सिरे से निर्धारित किए जाने पर जोर दे रहे हैं। भारत एनपीटी को भेदभावपूर्ण नीति मानकर हस्ताक्षर करने पर असहमति व्यक्त करता रहा है। यह अवश्य मानना होगा कि प्रधानमंत्री के कुछ वरिष्ठ सहयोगियों-सलाहकारों राजनायिकों ने पिछले दिनों एनएसजी की सदस्यता मिलने पर व्यापक समर्थन मिलने के दावे सीमा से अधिक बढ़-चढ़कर किए, जो सियोल बैठक में संभव नहीं हुआ। इससे सरकार की बड़ी किरकिरी हुई। रातोरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व राजनीति में नेहरू-शास्त्री-इंदिरा-अटल से भी अधिक सफल राजनेता साबित करने के अधिकारियों के प्रयास जल्दबाजी हैं। खासकर चीन-अमेरिका की कूटनीतिक चालों से निपटना आसान नहीं है। वे अपनी शर्तों और लाभ के आधार पर ही समर्थन एवं विरोध करते हैं। इसीलिए यशवंत सिन्हा ही नहीं भाजपा के कुछ अन्य बड़े नेता बंद कमरे में अथवा प्रतिपक्ष या निरपेक्ष लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश की प्राथमिकता एनएसजी नहीं एनडीवी यानी नेशनल डेवलपमेंट ऑफ विलेज होना चाहिए। देश के पचासों गांवों में भूमिहीन मजदूरों के लिए बनी हुई ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत मिलने वाली मजदूरी छह महीनों से नहीं मिल पाई है। दावों के बावजूद हजारों गांव अंधेरे में हैं। सैकड़ों गांवों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। प्रकृति से उपलब्ध सौर ऊर्जा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने पर पांच वर्षों में हर गांव तक रोशनी पहुंच सकती है और परमाणु बिजली घर लगने में 15 साल लगने वाले हैं। सरकार की छवि गांव की रोशनी से चमकेगी, न कि वाशिंगटन या बीजिंग से।
चर्चाः एनएसजी से अधिक जरूरी एनडीवी | आलोक मेहता
पूर्व विदेश मंत्री तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘एनएसजी (न्यूक्लियर सप्सायर ग्रुप) की सदस्यता पाकर भारत को कोई फायदा नहीं होगा, नुकसान ही होगा। इसलिए उस पर उतावलेपन की जरूरत नहीं थी।’
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