असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल के आगामी विधानसभा चुनावों से दो महीने पहले पुराने सहयोगी का हाथ छोड़ने और नए हाथ थामने का सिलसिला तेज हो गया है। वर्षों तक सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का साथ दे रही केरल कांग्रेस (एम.) ने ऐन मौके पर गठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी है। असल में यह केरल कांग्रेस का ही विभाजित हिस्सा है, जो भ्रष्टाचार के आरोपी पूर्व मंत्री के एम मणि का विरोध कर रहा था। यह खेमा अब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़ने की तैयारी में है। यों वाम मोर्चे के वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता अच्युतानंदन केरल कांग्रेस को साथ रखने के पहले कुछ शर्ते रखे हुए हैं। केरल कांग्रेस सीट बंटवारे के कारण विभाजित हुई है और वाम गठबंधन में अच्छा हिस्सा पाने की उम्मीद पाले हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी को केरल में सत्ता के लिए कोई बड़ा लाभ नहीं होना है, लेकिन संघ-भाजपा ने वोट प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस-कम्युनिस्ट से नाराज एक वर्ग भाजपा से जुड़ने लगा है। भाजपा को असम में नए गठबंधन से बड़े फायदे की आशा जगी है। उसने कल ही असम गण परिषद के साथ समझौते की घोषणा कर दी है। पार्टी ने 126 में से 24 सीटें असम गण परिषद के उम्मीदवारों को देना माना है। यही नहीं बोडोलैंड फ्रंट को भी 16 सीटें देकर भाजपा समझौता कर रही है। मतलब असम के सिंहासन के लिए भाजपा हरसंभव प्रयास करेगी। कांग्रेस 15 वर्षों से सत्ता में है। ऐसा नहीं हैं कि कांग्रेस आसानी से हार मान लेगी। वह केंद्र में भाजपा सरकार की विफलताओं कमजोरियों तथा उससे जुड़े कट्टरपंथी नेताओं की बयानबाजी को निशाना बनाएगी। मजेदार स्थिति यह है कि केरल सहित विभिन्न राज्यों में कम्युनिस्ट पार्टियों से टकराने वाली कांग्रेस अब पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन अथवा राजनीतिक समझ-बूझ के साथ समझौते के लिए वार्ताएं कर रही है। राहुल गांधी मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी से विचार-विमर्श करने लगे हैं। येचुरी भी मानते हैं कि भाजपा के उग्र रुख ने से पूरे प्रतिपक्ष को जुड़ने का अवसर दे दिया है।
चर्चाः जुड़ती-टूटती डोर गठबंधन की | आलोक मेहता
‘एकला चलो’ की राजनीति सत्ता के स्वर्णिम दरवाजे नहीं खोल पाती। इसलिए दशकों तक विचारधारा, मूल्यों और नेतृत्व पर निर्भर रहने वाले प्रमुख राजनीतिक दल-कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी समय के साथ सहयोगी बना और छोड़ रहे हैं।
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