लेकिन इन नामजद सदस्यों ने पिछली या वर्तमान सरकार पर कोई घातक प्रहार नहीं किए। भाजपा सरकार द्वारा करीब महीने भर पहले राज्यसभा में नामजद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आते ही अपनी ही सरकार पर तमाचे जड़ना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और गांधी परिवार से नफरत के साथ उनका विरोध वर्षों पुराना था, लेकिन रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को बर्खास्त करने, पिछले दो वर्षों में अर्थव्यवस्था तबाह होने की सार्वजनिक बयानबाजी एवं राजनीतिक गलियारों में प्रधानमंत्री के दाएं हाथ वित्त मंत्री अरुण जेटली के विरुद्ध अभियान मोदी सरकार के लिए शर्मनाक ही है।
सुब्रह्मण्यम स्वामी आर्थिक मामलों में स्वयं सबसे योग्य होने का दावा करते हैं और राजनीति भी केवल एक व्यक्ति दल वाली करते रहे हैं। देश-विदेश में राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए उनकी चर्चा होती रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अनुकंपा से उन्हें नामजद खाते से सांसदी मिल गई। लेकिन क्या मोदी सरकार के वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के खिलाफ कीचड़ उछालने की नैतिक भाषा संघ से प्रेरित मानी जा सकती है? रघुराम राजन न सही जेटली तो युवा काल से संघ की विद्यार्थी परिषद के जुझारू सदस्य, छात्र नेता, इमरजेंसी में जेल रह चुके निरंतर भाजपा के ही कार्यकर्ता रहे हैं।
रघुराम राजन ने रिजर्व बैंक के गवर्नर के नाते दुनिया में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारत की आर्थिक नाव को सुरक्षित बढ़ाने में सूझबूझ से निष्ठापूर्वक कार्य किया। भारत के अर्थ तंत्र से जुड़े शीर्ष लोगों के अलावा अंतरराष्ट्रीय जगत में भी उनकी योग्यता की सराहना हुई। स्वामी दलगत ‘निष्ठा’ के आधार पर रिजर्व बैंक से नियुक्ति का मुद्दा उठाकर इस संस्थान की स्वतंत्रता पर ही प्रहार कर रहे हैं। रिजर्व बैंक एक हद तक न्यायालय की तरह अर्थ तंत्र के लिए निष्पक्ष रूप से काम करता है। सत्तारूढ़ दल की इच्छा और आदेश से ही चलने पर रिजर्व बैंक पूरी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर सकता है। हर पद पर कठपुतलीनुमा लोगों को बिठाने का स्वामी का अभियान क्या मोदी सरकार की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय साख को भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा?