इसीलिए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर ने अदालत में तीखी लताड़ लगाते हुए कहा कि बी.सी.सी.आई. के सदस्यों ने इस संगठन को परस्पर लाभ प्रदान करने वाली सोसाइटी बना दिया है। संगठन ने मनमाने ढंग से संबद्ध यूनिटों को फंड बांटा।’ सुप्रीम कोर्ट इस बात से बेहद नाराज है कि मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी कांड की जांच के लिए न्यायाधीश लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के क्रियान्वयन के लिए भी बी.सी.सी.आई. तैयार नहीं हो रही और नए-नए बहाने सामने रख रही है। इस कमेटी ने 4 जनवरी 2016 को अपनी दूसरी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि क्रिकेट के सट्टे को वैधानिक कर दिया जाए और बी.सी.सी.आई. के संगठनात्मक ढांचे में व्यापक परिवर्तन किए जाएं। इसी तरह यह सलाह दी गई कि संगठन के पदाधिकारियों के कार्यकाल की समयावधि निधारित हो। वहीं दैनन्दिन कामकाज के लिए खेल क्षेत्र से जुड़े मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सहयोगी रहें। इस संगठन को सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत रखा जाए। आश्चर्य की बात यह है कि सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और पारदर्शिता की दुहाई देने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के कई नेता क्रिकेट संगठन में मनमानी, फिक्सिंग, अवैध सट्टेबाजी, भ्रष्टाचार जारी रखने एवं पारदर्शिता नहीं होने देने के लिए हरसंभव प्रयास करते रहे हैं। लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट को ही चुनौती दे दी गई है। विभिन्न प्रदेशों और क्रिकेट मैच के आयोजनों से करोड़ों रुपये कमाने वाला संगठन वर्षों से खेल के नाम पर कोई टैक्स नहीं देता और पदाधिकारी पांच सितारा सुविधाओं के साथ दुनिया की सैर करते रहते हैं। बिशन सिंह बेदी और कीर्ति आजाद जैसे विख्यात क्रिकेट खिलाड़ी कई वर्षों से बी.सी.सी.आई. की गड़बड़ियों के विरुद्ध आवाज उठाते रहे हैं लेकिन उनकी कभी नहीं सुनी गई। अब अदालत के हस्तक्षेप के बावजूद क्रिकेट के नेता कानूनी दांव पेच से मैदान में अपना खेल जारी रखने की कोशिश कर रहे हैं। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया में सुनवाई जारी है, लेकिन फैसला निर्णायक और ऐतिहासिक होगा।
चर्चाः क्रिकेट के मोटी चमड़ी वाले आका | आलोक मेहता
नेता, अफसर, शीर्ष उद्योगपति, डॉक्टर और आरोप सिद्ध होने पर स्वयं न्यायाधीश तक को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नतमस्तक होकर न्यायिक आदेश का पालन करना होता है। लेकिन भारतीय क्रिकेट के आका मोटी चमड़ी वाले हैं। वे सुप्रीम कोर्ट के सामने भी बल्लेबाजी कर रहे हैं।
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