नवंबर से महाराष्ट्र में एक शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के अंधविश्वास पर विवाद चल रहा था। भारतीय गणतंत्र दिवस के पवित्रतम पर्व पर अहमदनगर के पास पांच सौ से अधिक महिलाएं मंदिर प्रवेश पर रोक के विरूद्ध सड़कों पर निकलीं, तो प्रदेश की भाजपा सरकार की ‘धर्मप्राण’ ‘संविधान की प्रहरी’ पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। मुख्यमंत्री महोदय ने ‘मधुर’ वक्तव्य में महिलाओं के मंदिर प्रवेश को उचित मानते हुए मंदिर प्रशासन को आंदोलनकारी महिलाओं से ‘बातचीत’ का आग्रह कर दिया। शिव सेना के शेर पर सवारी करने वाले सर्वशक्तिमान मुख्यमंत्री दो महीने से 26 जनवरी तक इंतजार क्यों करते रहे? वह और उनकी पार्टी तो हिंदू धर्म और देवी-देवताओं की सबसे बड़ी भक्त है। दिल्ली के छतरपुर क्षेत्र में प्राचीन शनि मंदिर में प्रतिदिन हजारों महिलाओं के साथ भाजपाई महिला नेता भी दर्शन और आशीर्वाद पाने जाती हैं। महाराष्ट्र-गुजरात तो समाज-सुधार में सबसे अग्रणी रहे हैं। बड़े-बड़े संत-महात्मा, सुधारक, महाराष्ट्र में दलितों सहित हर स्त्री-पुरुष के मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन में सफल रहे हैं। उस क्षेत्र में धार्मिक नेता, समाजसेवी और ‘बेटियों’ की शिक्षा और सम्मान की रक्षा का संकल्प लेने वाली भाजपा के नेता, मंत्री इस आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व करने क्यों नहीं पहुंचे ?
राजनीतिक-प्रशासनिक अंदाज में नेक सलाह के बजाय सरकार अहमदनगर के शनि मंदिर के संचालकों को सीधी चेतावनी देकर उचित कार्रवाई भी कर सकती है। देश के कई प्राचीन मंदिरों के प्रबंधन को राज्य सरकारों ने समय-समय पर अपने हाथों में लिया है। महाराष्ट्र के इस शनि मंदिर की चर्चा पहले अधिक नहीं थी। प्राचीन मंदिरों को सुरक्षित रखना, उन्हें किसी अनुचित काम के लिए उपयोग न होने देने की जिम्मेदारी प्रशासन की भी होती है। फिर महिलाओं के साथ भेदभाव के अंधविश्वास और कूप मंडूक प्रबंधकों पर अंकुश के लिए सरकार ने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की और अब भी मामला अधर में क्यों लटकाया? दिल्ली के शनि मंदिर के गुरू तो लड़कियों की शिक्षा के साथ शनि आराधना का पाठ पढ़ाते हैं। इसलिए शनि देवता के नाम पर महाराष्ट्र में गड़बड़ी पर रोक के लिए महिलाओं का समर्थन होना चाहिए। धर्म और संविधान की रक्षा के लिए पहले धर्म गुरुओं को भारतीय संस्कृति का सबक दिया जाना चाहिए।