पर्यावरण मंत्रालय की वन्य जीव समिति के समक्ष केन-बेतवा संगम परियोजना विचाराधीन है। निश्चित रूप से नदियों की राह मोड़ने, जोड़ने से कुछ क्षेत्र प्रभावित होगा। इस इलाके के वन्य जीव भी प्रभावित होंगे। यों बाढ़, अकाल, वनों में अग्निकांड जैसी स्थितियों में भी पशुओं के मारे जाने का खतरा रहता है। केंद्र की ही एक और मंत्री मेनका गांधी ने भी बिहार सहित कुछ राज्यों में वन्य प्राणियों के मारे जाने से जुड़े नियम-कानूनों को लेकर गंभीर आपत्ति व्यक्त की है। मेनकाजी सांसद-मंत्री बनने से बहुत पहले से पशु संरक्षण अभियान में अग्रणी रही हैं। सवाल यह है कि सरकार में बैठे मंत्रियों-सांसदों को विभिन्न मंत्रालयों के बीच धीमी गति से चलने वाली फाइलों के लिए आंदोलन की चेतावनी देने की नौबत क्यों आ जाती है? नदियों के जल के सही उपयोग और लाखों लोगों की जीवन रक्षा जैसे प्रस्तावों पर महीनों तक अड़ंगेबाजी क्यों होती है? बुंदेलखंड और मराठवाड़ा में किसान-पशु मरते हैं और लालफीताशाही के कारण योजनाएं लटकी रहती हैं। बिहार हो या पूर्वोत्तर राज्य अथवा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर्यावरण की रक्षा के लिए समुचित कदम नहीं उठाए जा सके हैं। भारत सरकार चाहे विदेशी भूगर्भ विज्ञानियों की रिपोर्ट पर आपत्ति एवं खंडन कर दे, लेकिन असलियत यही है कि बढ़ते प्रदूषण से भारतीयों की औसत उम्र करीब 6 वर्ष कम हो रही है। कुछ इलाकों में यह और अधिक होगी। अमेरिकी भूगर्भ विज्ञानी संस्थान के अध्ययन में कोई राजनीतिक पूर्वाग्रह नहीं हो सकता है। जरूरत है सर्वोच्च स्तर पर पर्यावरण एवं पशु संरक्षण के लिए कारगर कदम उठाए जाने की।
चर्चाः नदियों के संगम के लिए मंत्री का अनशन। आलोक मेहता
लोकतंत्र की यही ताकत है। केवल विरोधी अथवा गैर सरकारी संगठन नहीं केंद्र सरकार की वरिष्ठ मंत्री सुश्री उमा भारती ने बुंदेलखंड की प्यासी जमीन और लाखों लोगों को राहत देने के लिए केन-बेतवा नदियों को जोड़ने के प्रस्ताव पर मंजूरी नहीं मिलने की स्थिति में अनशन सहित आंदोलन की घोषणा कर दी है। उमाजी स्वयं जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री हैं। नदी जोड़ परियोजना उनके मंत्रालय के तहत है। वह स्वयं बुंदेलखंड की चुनी हुई जन प्रतिनिधि हैं।
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