विश्व पर्यावरण दिवस पर केंद्र सरकार पेड़ लगाओ के पुराने अभियान को नया जामा पहनाकर हाथ धोने की कवायद कर रही है, वहीं हम मारक ओजोन के असर से बचाने के लिए शायद ही कोई नीतिगत पहल हो रही है। देश की राजधानी दिल्ली में बच्चों से लेकर बूढ़े तक सब अस्थमा की चपेट में है, उनके लिए ओजोन प्रदूषण बेहद खतरनाक है। उनका कहना है कि दिल्ली सरकार को फास्ट ट्रैक पर प्रदूषण की मार से बचने के लिए आपातकालीन कदम उठाने चाहिए, ताकि यहां के निवासी तो सुरक्षित महसूस कर सकें। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर से इस बाबत जब आउटलुक ने बात की तो उन्होंने कहा कि प्रदूषण और पूराने वाहनों के संबंध में आनन-फानन में निर्णय नहीं लिया जा सकता। इसमें समय लगेगा और तमाम पहलुओं को देखना होगा।
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) की सुनीता नारायण का कहना है कि ओजोन प्रदूषण रोकने के लिए अगर तुरंत बड़े पैमाने पर कदम नहीं उठाए गए तो बड़े पैमाने पर जन-जीवन प्रभावित होगा। नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस का बढ़ा हुआ स्तर ओजोन प्रदूषण के लिए रास्ता खोलता गहै। वाहनों से निकलने वाली इस गैस से पूरा वातावरण भारी है।
इसके साथ ही विश्व पर्यावरण दिवस पर एक चिंता यह भी जताई जा रही है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर जिस तरह से अंधाधुध योजनाओं को जो मंजूरी दी जा रही है, उससे भी पर्यावरण को भीषण नुकसान हो रहा है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए चलाए जा रहे सी-प्लेन से भी पर्यावरण को खामियाजा देना पड़ रहा है। दिल्ली सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को इस दिशा में फास्ट ट्रैक पर काम करने की जरूरत है। इस बारे में इक्वेशंस नामक संस्था ने गंभीर सवाल उठाए हैं कि 2011 में अंडमान निकोबार में शुरू किए गए सी-प्लेन अब अनेक राज्यों में चल रहे हैं। केरल, मुंबई के बाद जुलाई में अब गोवा में भी शुरू होने वाले हैं। जबकि इनसे मछुआरों की आजीविका और समुद्र की इकोलॉजी को गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
ऐसी अनगिनत परियोजनाओं के बारे में भी बात होनी ही चाहिए, जो सीधे-सीधे जन-जंगल-जमीन को तबाह कर रही हैं, भूमि को बंजर बना रही है, जंगल काट रही हैं, वन क्षेत्र के बीच से सड़कें निकाली जा रही हैं और फिर भी उन्हें कोई रोकने की हिम्मत नहीं दिखाता। ये सब विकास के नाम पर है। किसका विकास और किस कीमत पर विकास-ये सवाल अनुतरित ही है। ये तमाम ऐसे सवाल है जो आज, यानी पर्यावरण दिवस पर तो कम से कम उठऩे ही चाहिए।