मानवाधिकार कार्यकर्ता और खुद ट्रांसजेंडर अक्कई पदमशाली का कहना है कि वैसे तो उनका समुदाय इस विधेयक का स्वागत करता है। पदमशाली के अनुसार बमुश्किल ही हमारे अधिकार सुनिश्चित करता एक विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ है लेकिन हमारे बारे में यह एक ऐसा विधेयक है जिसमें हम लोगों से ही मशविरा नहीं किया गया। हमें इसमें शामिल नहीं किया गया। इस विधेयक के मौजूदा रूप के हम खिलाफ हैं, अक्कई साफ शब्दों में पूछती है कि क्या सारे अधिकार उन लोगों के हैं जिनके पास जननांग हैं।
विधेयक की खामियां
- राज्यसभा में पारित विधेयक ट्रांसजेंडर्स की लैंगिक पहचान नहीं बताता। इनका कहना है कि हमारे पास हक होना चाहिए कि हम बता सकें कि हम ट्रांसजेंडर हैं या कोथीस (जो पुरुष महिलाओं जैसे हाव-भाव वाले होते हैं), या जगप्पा, हिजड़ा आदि।
- बलात्कार के बारे में बने कानून में ट्रांसजेंडर्स का जिक्र नहीं है। ट्रांसजेंडर्स का कहना है कि क्या उनके साथ बलात्कार नहीं होता है। बल्कि उनके साथ सबसे अधिक यौन हिंसा होती है। विधेयक में इसका कहीं जिक्र नहीं है।
- अक्कई का कहना है कि क्या बलात्कार उनके ही साथ होता है जिनके पास जननांग होते हैं। अपनी बात को पुख्ता करते हुए वह कहती है कि वर्ष 2014 में कर्नाटक में पुलिस ने भिखारी कॉलोनी से 43 ट्रांसजेंडर्स को उठा लिया। उन्हें मारा, गालियां दीं और पूरी कॉलेनी में उनके पूरे कपड़े उतार दिए। मैसूर में एक आदमी की दिल के दौरे से मौत हो गई को उसे हत्या मान वहां रहने वाले सभी ट्रांसजेंडर्स को उठा लिया गया। पुलिस स्टेशन में उनकी छातियां दबा-दबा कर देखा गया, उनकी जननागों में लाठियां डाल दी हईं। ऐसे अनगिनत मामले हैं।
- घरेलू हिंसा विधेयक में ट्रांसजेंडर्स को शामिल नहीं किया गया है। जबकि कई ट्रांसजेंडर्स ने शादियां की हैं या उनके जीवन साथी हैं। उनके साथ जमकर घरेलू हिंसा होती है। विधेयक में इसका जिक्र नहीं है। इनका कहना है कि क्या आम इंसान और ट्रांसजेंडर ही शादी के बाद घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं।
- इनका कहना है कि इनके परिवार इन्हें घर में रखना पसंद नहीं करते। फेंक देते हैं या भगा देते हैं। परिवार के अंदर ट्रांसजेंडर बच्चों के अधिकार महफूज नहीं है। मौजूदा विधेयक में इसका जिक्र नहीं है। इन्हें जायदाद में से हिस्सा नहीं मिलता है।