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बेटे को शहीद का दर्जा दिलाने की जंग

एक बुजुर्ग पिता पिछले आठ महीनों से रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय के चक्कर काट रहा है। जिंदगी भर पूरे दमखम से सत्ता प्रतिष्ठानों से लड़ने-भिड़ने का रसूख रखने वाले सांवलराम यादव ने प्रण किया है कि वह युद्ध में हताहत हुए अपने बेटे को शहीद का दर्जा दिलवाए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। मामला सिर्फ एक जवान की मौत का नहीं है। इससे जुड़ा हुआ है, उन सैकड़ों जवानों की मौत का मसला जो सियाचिन से लेकर दुर्गम सीमा पर देश के लिए अत्यंत विषम परिस्थितियों में जान गंवा देते हैं। इन जवानों की मौत को आखिरकार शहीद का दर्जा क्यों नहीं मिलता?
बेटे को शहीद का दर्जा दिलाने की जंग

यह मामला है राजस्थान के सीकर जिले के नीमका थाना इलाके के 31 वर्षीय नौजवान सुनील कुमार यादव का है। जिसकी मौत 18 अञ्चटूबर 2014 को अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर यांगत्से सेक्टर में पेट्रोलिंग के दौरान 15,100 फुट की ऊंचाई पर शून्य से 15 डिग्री कम तापमान पर ऑक्सीजन की कमी से हुई थी। इस सैनिक की मौत के बाद जिस 316 एफडी रेजिमेंट में वह तैनात था उसने अपनी टिप्पणी में सुनील यादव को शहीद का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा की। इसके बाद सेना की प्रक्रिया के तहत ऐसी तमाम असमय मौतों पर होने वाली कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी की रिपोर्ट (जिसकी प्रति आउटलुक के पास है) में साफ कहा गया है कि सुनील यादव अपनी मौत के समय शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट था। उसे किसी भी तरह का शारीरिक व मानसिक दबाव नहीं था। उसकी शादीशुदा जिंदगी खुशहाल थी। मौत के समय वह एक बेहद कठिन पहाड़ी रास्ते से गुजर रहा था। जहां उसे उलटी हुई और ऑक्सीजन की कमी की वजह से मौत हो गई। सेना की इस अदालत का मानना है कि सुनील यादव की मौत लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल में सेना की ड्यूटी पर हुई, लिहाजा उसे युद्ध में हताहत घोषित किया जाए। इस रिपोर्ट के बाद परिवार वालों को लगा कि अब उनका सुनील शहीद सुनील कहलाएगा। लेकिन ऐसा अभी तक हुआ नहीं। शायद यह इतना आसान है भी नहीं। इसके लिए भी बहुत दफ्तरों के चञ्चकर काटने पड़ते हैं और आश्वासन मिलने के बाद भी काम कब तक हो, इसका कुछ पता नहीं।

इस बारे में जब आउटलुक ने शहीद सुनील के पिता से पूछा कि मामला कहां अटक रहा है तो उन्होंने बताया कि अभी शहीद का दर्जा देने की फाइल रक्षा मंत्रालय में अटकी है। सेना मुख्यालय के एमपी-5 सेक्‍शन ने शहीद घोषित नहीं किया है। जब तक यहां से फाइल नहीं चलेगी, तब तक बात नहीं बनेगी। हालांकि वह पिछले दिनों अपने इलाके के सांसद सुमेधानंद सरस्वती के साथ रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मिल आए। इस मुलाकात के बारे में उन्होंने बताया कि रक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को शहीद का दर्जा दिलवाने में हर सभंव मदद करेंगे। खासतौर से जब उन्होंने बेटे की बटालियन द्वारा युद्ध में हताहत किए जाने की सिफारिश देखी। इससे पहले वह रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्र्रजीत सिंह से भी मिले। हर जगह से आश्वासन मिलने के बावजूद सांवल राम को लगता है कि लड़ाई अभी लंबी है।

एक सवाल यह भी पूछा कि आखिर  वह इस कदर क्यों चाहते हैं कि उनके बेटे को शहीद का दर्जा मिले, तो उन्होंने कहा कि इससे उनके बेटे को सम्मान मिलेगा। उसका नाम गांव-देहात में याद रखा जाएगा। परिवार को मदद मिलेगी। जहां मौत होती है वहां की राज्य सरकार एक पैकेज देगी यानी अरुणाचल प्रदेश और राजस्थान की सरकार का भी पैकेज है। उनके शहीद बेटे के नाम से विद्यालय खोला जा सकता है, पेट्रोल पंप मिल सकता है और 25 बीघा जमीन के साथ उसके छोटे बच्चों को पढ़ाई में मदद मिल जाएगी। ये सब हो न हो, एक शहीद के पिता होने का सुख मिलेगा क्योंकि बाकी जो घोषणाएं हैं, उन्हें हासिल करने की भी एक लंबी लड़ाई है।

अपनी लड़ाई के जरिये सांवलराम एक अहम सवाल तो वह उठा ही रहे हैं कि दुर्गम सीमा क्षेत्र, भीषण रूप से प्रतिकूल परिस्थितियों में तैनात सिपाहियों की जान की कीमत क्या यह देश शहीद का दर्जा देकर भी चुका नहीं सकता।

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