अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर जारी सियासी बहस के बीच देश की शीर्ष अदालत में सोमवार से इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू हो रही है। यह सुनवाई राम जन्मभूमि पर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर होनी है।
27 सितंबर को इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ, 1994 के मामले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की तीन जज की बेंच के फैसले बाद, राम जन्मभूमि विवाद के मामले में पहली बार सुनवाई शुरू हो रही है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच जिसमें जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस संजय किशन कौल शामिल हैं, इस मामले में दायर अपील पर सुनवाई शुरू करेंगे।
गौरतलब है कि अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले निर्णय में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए।
कोर्ट इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी और यथास्थिति बरकरार रखने की बात कही थी।
बता दें कि राम जन्म भूमि के इस विवाद ने आजाद भारत में रूप लिया हो ऐसा नहीं है। बल्कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भी इस पर लगातार विवाद चलता रहा है। 1528 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया। जिसके बाद इसे लेकर कई फसाद होते रहे।
आइए जानते हैं, अयोध्या विवाद के अहम पड़ावों के बारे में-
-विवादित स्थल पर कब्जे को लेकर 1859 में विवाद हुआ था। इस पर ब्रिटिश प्रशासन ने भूमि की बाड़बंदी करते हुए दो अलग-अलग भाग कर दिए थे। एक हिस्से पर हिंदू पूजा कर सकते थे, जबकि दूसरा मुस्लिमों की इबादत के लिए छोड़ गया। लेकिन, यह व्यवस्था ज्यादा दिन तक नहीं रह सकी और 1885 में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर छत डालने की मंजूरी के लिए याचिका दाखिल कर दी।
-1949 में बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति देखी गई थी। जिसके बाद दोनों पक्षों के प्रतिनिधि कोर्ट चले गए, और विवादित स्थल पर ताला लगा दिया गया।
-1959 में निर्मोही अखाड़ा की ओर से विवादित स्थल के स्थानांतरण के लिए अर्जी दी थी।
-1961 में यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद स्थल के मालिकाना हक के लिए अपील दायर की थी।
-1986 में विवादित स्थल को श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। 1986 में ही बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया गया।
-1989 में विश्व हिंदू परिषद ने राजीव गांधी सरकार की इजाजत के बाद बाबरी के पास राम मंदिर का शिलान्यास किया।
-पहली कोशिश के करीब 130 साल बाद 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने एक बार फिर मसले को हल करने की कोशिश की। चंद्रशेखर ने विश्व हिंदू परिषद के लोगों से इस मसले के समाधान के लिए बातचीत की कोशिश शुरू की, लेकिन बात नहीं बन सकी।
-1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की। 1991 में रथयात्रा की लहर से बीजेपी यूपी की सत्ता में आई। इसी साल मंदिर निर्माण के लिए देशभर के लिए इंटें भेजी गई।
- 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी ढांचे का विध्वंस किया गया था। इसके ठीक 10 दिन बाद तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जस्टिस लिब्राहन के नेतृत्व में एक इन्क्वॉयरी आयोग का गठन किया। इसने 17 साल बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन इसमें क्या था, यह कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।
- 26 जुलाई, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए सभी पक्षों को सौहार्दपूर्ण ढंग से मामले को सुलझाने का समय दिया था, लेकिन किसी ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। अदालत ने कहा था कि वह कुछ दिन बाद अपना फैसला सुनाएगी।
- 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए।
- 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
- 19 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।
27 सितंबर 2018 को कोर्ट ने इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के 1994 का फैसला, जिसमें कहा गया था कि 'मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं' को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार करते हुए कहा था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला सिर्फ भूमि आधिग्रहण के केस में ही लागू होगा।