जम्मू-कश्मीर में मौजूदा स्थिति को लेकर गांधी शांति प्रतिष्ठान ने सरकार के कहा है कि हर स्तर पर विमर्श और अभिव्यक्ति की आजादी दी जाए। इससे परिस्थितियों को संभालने में मदद मिलेगी। आज देश के नागरिकों को संकट के दौर से गुजर रहे कश्मीरियों के साथ खड़े रहना होगा। उन्हें यह बताना होगा कि देश का हृदय उनके लिए खुला है।
गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत बयान में बयान जारी करके कहा है कि कश्मीर की विस्फोटक स्थिति को देख-परख कर, देश के गांधीजन यह साझा बयान जारी कर रहे हैं। यह किसी राजनीतिक पार्टी का नहीं, बल्कि भारत की जनता और भारतीय लोकतंत्र के लिए गहरी चिंता का मंजर है।
बयान में कहा गया है कि राज्यसभा और लोकसभा में चली दो दिनों की बहस, प्रधानमंत्री का राष्ट्र को संबोधन और तब से लगातार कश्मीर में बन रहे हालात को देखने के बाद हम गांधी-प्रेरित नागरिक यह कहने को विवश हुए हैं कि सरकार ने देश को एक ऐसी अंधी सुरंग में डाल दिया है जिसका दूसरा सिरा बंद है। जिस बंदूक के बल पर सरकार ने कश्मीर को चुप कराया है, अब उसी बंदूक की दूरबीन बनाकर देश को उसका कश्मीर देखा और दिखाया जा रहा है।
बयान में कहा गया है कि आपातकाल के दौरान भी लोकसभा का ऐसा अपमान नहीं हुआ था और न तब के विपक्ष ने उसका ऐसा अपमान होने दिया था। यह लोकतंत्र के पतन की पराकाष्ठा है। हम कश्मीर को इसी तरह लंबे समय तक बंद तो रख नहीं सकेंगे। दरवाजे खुलेंगे, लोग बाहर निकलेंगे। उनका गुस्सा, क्षोभ सब फूटेगा। इसकी खबरें आपके बहुत रोकने-दबाने के बाद भी बाहर आने लगी हैं। बाहरी ताकतें पहले से ज्यादा जहरीले ढंग से लोगों को उकसाएंगी। और, हमने संवाद के सारे पुल जला रखे हैं, तो क्या होगा? सरकारी दल के लोग जैसी बयानबाजी कर रहे हैं और कश्मीर के चारागाह में उनके चरने के लिए अब क्या-क्या उपलब्ध, इसकी जैसी बातें लिखी-पढ़ी व सुनाई जा रही है, क्या वे बहुत वीभत्स नहीं हैं?
जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर बयान जारी करने वालों में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज के डॉ. आशीष नंदी, रजा फाउंडेशन के अध्यक्ष अशोक वाजपेयी, समाजशास्त्री आनंद कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद जैसी कई हस्तियां शामिल हैं।