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तीन तलाक पर सुनवाई शुरू, खुर्शीद बोले यह कोई मुद्दा ही नहीं

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ में तीन तलाके मुद्दे पर सुनवाई आरंभ हो गई है। अदालत ने आरंभ में ही साफ कर दिया है कि सुनवाई इस बात पर होगी कि क्या तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है? क्या तीन तलाक लागू किए जाने योग्य मौलिक अधिकार का हिस्सा है और क्या तीन तलाक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है?
तीन तलाक पर सुनवाई शुरू, खुर्शीद बोले यह कोई मुद्दा ही नहीं

उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक और निकाह हलाला की परंपरा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज ऐतिहासिक सुनवाई शुरू कर दी। न्यायालय ने कहा कि वह पहले यह निर्धारित करेगा कि क्या यह परंपरा इस्लाम के मौलिक तत्वों में है। प्रधान न्याधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि मुस्लिमों में बहुपत्नी प्रथा के मुद्दे पर शायद बहस नहीं हो क्योंकि ये तीन तलाक के मुद्दे से जुडा हुआ नहीं है।

संविधान पीठ ने बहस के लिए मुद्दे की रूपरेखा तैयार करते हुए कहा, हम इस मुद्दे पर विचार करेंगे कि क्या तीन तलाक सांस्कारिक मामला है और क्या इसे मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया जा सकता है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि तीन तलाक धर्म का मौलिक तत्व है तो वह इसकी संवैधानिक वैधता के सवाल पर विचार नहीं करेगा। पीठ ने कहा कि वह इस पहलू पर भी विचार करेगी कि तीन तलाक संविधान के तहत धर्म को मानने के लिए लागू करने योग्य मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अमित सिंह चड्ढा ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक सायरा बानो की ओर से तीन तलाक की परंपरा के खिलाफ बहस शुरू की और कहा कि यह इस्लाम का मूलभूत तत्व नहीं है और इसलिए इसे खत्म किया जा सकता है। उन्होंने अपनी दलीलों के समर्थन में पड़ोसी इस्लामिक मुल्कों पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रचलित परंपराओं का हवाला देते हुए कहा कि तीन तलाक गैर इस्लामी है।

इस पर पीठ ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि वह इस मुद्दे पर विभिन्न इस्लामिक देशों में प्रचलित कानूनों का अवलोकन करना चाहेगी। एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यदि न्यायिक व्यवस्था से इतर तलाक दिए जा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में इसके परिणामों से निबटने के लिए न्यायिक निगरानी होनी चाहिए।

इस मामले में अपनी व्यक्तिगत क्षमता में न्यायालय की मदद कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने तीन तलाक को बेकार का मुद्दा बताते हुए कहा कि यह पति और पत्नी के बीच समझौते के प्रयासों के बगैर पूरा नहीं माना जाता है। उन्होंने कहा कि तलाक के आधार की वैधता का निर्धारण करने के लिए कोई न्यायिक व्यवस्था नहीं है। पीठ ने जब सवाल किया कि क्या एक बार में तीन तलाक दिए जाने के बाद पुन: मेल-मिलाप संहिताबद्ध है, खुर्शीद ने इसका नकारात्मक जवाब दिया।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने खुर्शीद से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि कोई भी समझदार मुस्लिम अचानक एक दिन सुबह उठकर तलाल तलाक तलाक नहीं कहेगा

पीठ ने भोजनावकाश के बाद भी दलीलें सुनना जारी रखा। शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं में मुस्लिम समाज में प्रचलित निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा जैसी परंपराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। पीठ मुस्लिम महिलाओं की समानता की जुस्तजू नाम से स्वत: लिए गए मुख्य मामले पर भी सुनवाई करेगी।

सुनवाई के नियम तय

सुनवाई के आरंभ में मुख्य न्यायाधीश ने रोजाना आधार पर होने वाली सुनवाई के नियम तय कर दिए हैं। इसके तहत अपनी बात रखने के लिए दोनों पक्षों को दो-दो दिन दिए जाएंगे, इसके बाद एक-एक दिन दूसरे पक्ष के तर्क का जवाब देने के लिए होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों पक्ष जो चाहें तर्क रख सकते हैं मगर उसने दोहराव नहीं होना चाहिए। दोनों ही पक्षों को तीन तलाक की वैधानिकता पर ध्यान केंद्रित कर अपनी बात रखनी होगी। भारत में मुस्लिम समाज मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिये संचालित होता है जो कि शरीयत पर आधारित है। लंबे समय से मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों को बदलने की मांग यह कहते हुए की जा रही है कि इससे मुस्लिम महिलाओं के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन होता है।

वर्तमान मामला क्या है

वर्तमान मामले की शुरुआत तब हुई जब उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी। साथ ही, मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी। शायरा ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहली शादी के रहते हुए शौहर के दूसरी शादी करने के मुद्दे पर विचार करने को कहा। अर्जी में कहा गया है कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसके बाद, एक के बाद एक कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं।

राजनीतिक हो चुका है मुद्दा

यह मुद्दा अब पूरे देश में राजनीतिक रूप ले चुका है। मुस्लिमों का कट्टरपंथी धड़ा तीन तलाक को बनाए रखने के लिए अड़ा हुआ है और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इसके पक्ष में खड़ा है। दूसरी ओर वर्तमान केंद्र सरकार इस प्रथा को खत्म करने की हिमायती है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई अवसरों पर इस प्रथा को मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार की संज्ञा दे चुके हैं। पूरे देश में इस मुद्दे पर चल रही बहस को देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है कि गर्मी की छुट्टियों के दौरान लगातार इस मुद्दे पर सुनवाई कर मामले को सुलझाया जाए।

मुस्लिम महिलाओं ने किया स्वागत 

मुस्लिम महिलाओं के एक संगठन ने तीन तलाक को लेकर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का आज स्वागत किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस बात की समीक्षा करेगी कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म के संबंध में मौलिक अधिकार है या नहीं, लेकिन वह बहुविवाह के मामले पर संभवत: विचार नहीं करेगी। ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने भाषा से कहा, पूरा देश नये युग की ओर जा रहा है और हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय का फैसला निश्चित तौर पर मुस्लिम महिलाओं के लिए हितकारी होगा और उनकी मर्यादा को बनाये रखने वाला होगा। यह भारत की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के लिए ऐतिहासिक एवं क्रान्तिकारी पल है। उन्होंने कहा कि शरीया कानून बनाने वालों ने सामान्य मुस्लिम महिला के दर्द को कभी महसूस नहीं किया। शाइस्ता ने कहा, आज मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी की उम्मीद और उन्हें न्याय दिलाने का दिन है। कम से कम अब हम महसूस करते हैं कि मुस्लिमों की बेहतरी शुरू हो गयी है। उन्होंने कहा कि तलाक वैवाहिक संबंध तोड़ने का अंतिम विकल्प है, ना कि पहला।

ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा, अब समय आ गया है कि तय हो कि पैगम्बर का इस्लाम सर्वोपरि होगा या फिर चुनिन्दा मुल्लाओं का इस्लाम। (एजेंसी इनपुट)

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