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जामिया की छात्रा ने बताई खौफनाक पलों की दास्तां, “जोर का धमाका हुआ, मुझे लगा हम मरने वाले हैं”

रविवार को जामिया मिलिया छात्रों द्वारा संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में निकाले गए जुलूस पर पथराव...
जामिया की छात्रा ने बताई खौफनाक पलों की दास्तां, “जोर का धमाका हुआ, मुझे लगा हम मरने वाले हैं”

रविवार को जामिया मिलिया छात्रों द्वारा संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में निकाले गए जुलूस पर पथराव होने के बाद इसने हिंसक रूप ले लिया। दिल्ली पुलिस पर आरोप है कि वह जबरन कैंपस में घुसी। उसने छात्रों पर न सिर्फ लाठी चार्ज किया बल्कि आंसू गैस के गोले छोड़े और शांति से लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को घसीट कर बाहर कर दिया। दक्षिण दिल्ली के सुखदेव मेट्रो स्टेशन तक मार्च पहुंचा ही था कि इस पर पथराव हो गया। पुलिस ने छात्रों को घेर लिया। कई छात्र इसमें घायल हो गए। छात्रों को घिरा हुआ देख कर कुछ रिपोर्टर छात्रों की ओर दौड़े और पुलिस वालों से छात्रों को जाने देने का अनुरोध भी किया। लेकिन भारी पुलिस बल के बीच छात्रों की आवाज दब गई।

पुलिस ने छोड़े आंसू गैस के गोले

विरोध मार्च जामिया नगर और उसके आसपास के क्षेत्रों से गुजर रहा था। लेकिन न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी तक पहुंचते-पहुंचते इसने उग्र रूप ले लिया। विरोध प्रदर्शन में तीन बसों को आग के हवाले कर दिया गया, जबिक कई वाहनों में तोड़फोड़ हुई। स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। छात्रों का कहना है कि वे लोग कैंपस में ही शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रकट कर रहे थे। बाहर क्या हुआ इसका उन्हें इल्म नहीं है। कैंपस के बाहर प्रदर्शन कर रहे और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी चलाईं और फिर पुलिस कैंपस में घुस गई। इस घटना छात्रों सहित कम से कम 60 लोग घायल हुए हैं।  

मुझे लगा हम मर जाएंगे

स्नातकोत्तर के प्रथम वर्ष में पढ़ रहीं, अस्मां कहती हैं, “हम लोग मेन कैंपस में रीडिंग हॉल में थे। तभी बाहर शोर हुआ। हम घबरा गए और हमने लाइटें बंद कर दीं। किसी को नहीं पता था कि क्या हुआ है। तभी पुलिस अंदर आई और हमसे अपराधियों की तरह हाथ ऊपर उठाने को कहा। यह बहुत तकलीफदेह था। जब हमें बाहर लाया गया तब हमने देखा कि छात्रों के एक और समूह को पुलिस ने घेर रखा है। अब वे लोग कहां हैं हमें यह भी नहीं पता।”

एक और छात्रा का कहना है कि पुलिस कैंपस के आसपास इकट्ठा हो गई और आंसू गैस के गोले छोड़ने लगी। “मेरी दोस्त और मैं लाइब्रेरी की ओर भागे। हम वहां करीब एक घंटा रहे, जब तक पुलिस ने हमें बाहर नहीं निकाल लिया। जब मेरी सहेली ने कहा कि वो हॉस्टल वापस जाना चाहती है तो पुलिस वाले ने हमें ताना मारते हुए कहा, “तुम्हें आजादी चाहिए थी न? हम तुम्हें आजादी देंगे।”

एक और छात्रा का कहना है कि वह बाथरूम के अंदर फंसी हुई थी। पुलिस ने उसे हिजाब पकड़ कर खींचा और एक दोस्त को बेरहमी से मारा। वह बताती हैं, “उन लोगों ने उसे मारा और फिर हिरासत में ले लिया। हमने सिर्फ जोर का धमाका सुना और सोचा आज हम मर जाएंगे। मैंने अपनी मां को मैसेज किया कि मैं उनसे प्यार करती हूं। कल हम मर सकते थे। उन लोगों ने हमें पाकिस्तानी कहा, गालियां दीं और यह सब कैंपस के अंदर हुआ।”

पुलिस ने की बर्बरता

कई वीडियो दिखाते हैं कि पुलिस वाले लाठियों से प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीट रहे हैं, जो हर दिशा में भाग रहे हैं। दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के डिप्टी कमीश्नर चिन्मय बिस्वाल से जब छात्रों पर पुलिस अत्याचार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ कोई समस्या नहीं है। बिस्वाल का कहना है, “करीब दो से ढाई के बीच वे रिंग रोड पर पहुंचे। जब तक हम सूर्या होटल के पास बैरीकेड लगाकर उन्हें रोकते तब तक वे होली फैमिली अस्पताल को पार करते हुए सराय जुलैना पहुंच चुके थे।

डीसीपा का कहना है कि प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील की गई थी कि वे निर्धारित जगह पर ही प्रदर्शन करें, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी और डीटीसी की एक बस को आग के हवाले कर दिया। शांति की अपील को बार-बार न मानने के कारण ही पुलिस ने बलपूर्वक उन्हें पीछे धकेलने का प्रयास किया। पुलिस के कैंपस में जबरन घुसने के जवाब में डीसीपी का कहना है कि कैंपस में सड़क के दोनों ओर से जा सकते हैं। भीड़ कैंपस में घुस गई थी और लगातार हम पर पत्थर फेंक रही थी। हम छात्रों की सुरक्षा के लिए ही अंदर गए थे। हिंसा के तुरंत बाद विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर वसीम अहमद खान ने कहा, पुलिस बलपूर्वक कैंपस में घुसी, उन्हें अंदर आने की अनुमति नहीं दी गई थी। हमारे स्टाफ और छात्रों पीटा गया और बलपूर्वक कैंपस छोड़ने को मजबूर किया गया।

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