अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत अब चीन, अमेरिका, रूस, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे महाशक्ति कहलाने वाले देशों के समकक्ष माने जाने लगा है। पश्चिमी देश हों या अफ्रीकी अथवा लातीनी अमेरिकी, एशिया में चीन के साथ भारत की तुलना भी की जाती है। लेकिन ओलंपिक में जब अमेरिका या चीन जैसे देशों के विजेता खिलाड़ियों की पदक संख्या देखकर हमें थोड़ा संकोच होने लगता है। यही नहीं, पहले एशियाई तथा कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद भारत में आलंपिक के आयोजन की इच्छा और बलवती हो जाती है। आखिरकार, हम किस दृष्टि से ब्राजील से कमजोर हैं। गरीबी और आर्थिक कठिनाइयों के मामले में ब्राजील हमसे आगे है। वहां राजनीतिक उथल-पुथल भी भारत से अधिक है। भ्रष्टाचार के मामलों में भी हाल के वर्षं में ब्राजील के नेताओं पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं।
इस दृष्टि से भारत प्राकृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों में ब्राजील से बेहतर स्थिति में है। इसलिए आलंपिक के आयोजन के लिए भारत के पास समुचित साधनों की कमी नहीं मानी जा सकती है। फिर भी हमारे सपने अधूरे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद अंताष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष थामस बाख से मुलाकात के दौरान ओलंपिक के लिए भारत की दावेदारी की बात उठाई भी थी। उसी समय यह अनुमान भी लगाया गया कि ओलंपिक के आयोजन पर लगभग 10 अरब डॉलर का खर्च उठाना पड़ सकता है। भारत सरकार और भारतीय कारपोरेट कंपनियों के बल पर यह खर्च आसानी से उठाया जा सकता है। लेकिन समस्या भारतीय खेल संघों में राजनेताओं की घुसपैठ के साथ भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों की है।
कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए भ्रष्टाचार का धुंआ अब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने है। भ्रष्टाचार के उस मामले में कानूनी कार्रवाई की गति भी ढीली रही, क्योंकि सत्ताधारियों के पैर धंसे हुए थे। दो साल तक तो भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन का निलंबन अंतरराष्ट्रीय बोर्ड ने कर दिया था। 2020 के लिए तो टोक्यो का नाम तय हो चुका है। लेकिन 2024 और 2028 की दावेदारी के लिए भारत को विभिन्न स्तरों पर प्रयास करनें होंगे। भारत में खेलों को अधिकाधिक प्रोत्साहन एवं राजनीति से बचाने का प्रयास करना होगा।