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इशरत एनकाउंटरः पूर्व आईबी अधिकारी पर नहीं चलेगा मुकदमा

केंद्र सरकार ने गुजरात के चर्चित इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में खुफिया ब्यूरो (आईबी) के पूर्व अधिकारी राजेंद्र कुमार और उनके तीन सहयोगियों पर मुकदमा चलाने की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की मांग को मानने से इंकार कर दिया है। इससे मामले की जांच पर ब्रेक लग सकता है।
इशरत एनकाउंटरः पूर्व आईबी अधिकारी पर नहीं चलेगा मुकदमा

चारों ही अधिकारियों पर आपराधिक साजिश का आरोप है। कुमार और तीन अन्य आरोपियों के लिए यह राहत की खबर है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि 11 साल पुराने इस मामले में तथ्यों, हालात और उपलब्ध रिकार्डों एवं दस्तावेजों की जांच के बाद मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी गई। सीबीआई ने कुमार पर हत्या का आरोप भी लगाया था।

 

गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, तथ्यों, हालात और मामले के संबंध में मंत्रालय को उपलब्ध दस्तावेजों की विस्तृत जांच के बाद मंजूरी नहीं दी गई। सरकारी सूत्रों ने बताया कि सीबीआई केवल हालात से जुड़े साक्ष्यों पर निर्भर कर रही थी और मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के लिए इसे आधार नहीं बनाया जा सकता। कुमार अवकाशप्राप्त विशेष निदेशक हैं। वह और आईबी के तीन अन्य अधिकारी इशरत जहां तथा तीन अन्य की हत्या के पीछे की साजिश में कथित तौर पर शामिल थे। इशरत की मां का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि सरकार के फैसले को चुनौती दी जाएगी। इशरत की मां शमीमा कौसर की ओर से पेश हुए वकील आईएच सैयद ने अहमदाबाद में पीटीआई-भाषा से कहा, ‘वकील वृन्दा ग्रोवर नहीं हैं। उनके लौटने के बाद मैं आगे की कार्रवाई के बारे में तय करूंगा। लेकिन सामान्य तौर पर इसे चुनौती दी जाएगी।’

 

सैयद के मुताबिक गृह मंत्रालय ने चूंकि सीबीआई को मंजूरी नहीं दी है इसलिए राजेंद्र कुमार, एम.के. सिन्हा, टी मित्तल और राजीव वानखेड़े के खिलाफ आरोप नहीं तय किए जा सकते। सीबीआई ने इस मामले में अपनी अंतिम रिपोर्ट गृह मंत्रालय को दो साल पहले सौंप दी थी। गृह मंत्रालय ही आईबी अधिकारियों का नियंत्रक मंत्रालय है। सूत्रों ने बताया कि सीबीआई और गृह मंत्रालय के बीच कई दौर की बातचीत के बाद अंतिम फैसला किया गया। आईबी के पूर्व निदेशक आसिफ इब्राहिम ने अपने कार्यकाल के दौरान उक्त अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के किसी भी कदम का विरोध किया था। इब्राहिम का कार्यकाल पिछले साल दिसंबर में समाप्त हो गया था। अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 2004 में मुठभेड़ के दौरान मुम्ब्रा कालेज की 19 वर्षीय छात्रा इशरत और तीन अन्य के मारे जाने के मामले में कुमार और तीन अन्य पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देने के फैसले के बारे में गृह मंत्रालय की ओर से सीबीआई को अवगत करा दिया गया है।

 

कुमार 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी थे। वह दो साल पहले ही रिटायर हुए हैं। वह अहमदाबाद में उस समय आईबी में संयुक्त निदेशक पद पर तैनात थे, जब कथित मुठभेड़ हुई थी, जिसमें इशरत मारी गई थी। आईबी के पूर्व अधिकारी से सीबीआई ने उनकी कथित भूमिका को लेकर दो बार पूछताछ की। इस बीच कांग्रेस नेता और पूर्व गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने गृह मंत्रालय के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए इसकी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इससे आम आदमी को न्याय देने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े होते हैं। एक अन्य कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने भी फैसले की आलोचना की है।

 

सीबीआई सूत्रों का कहना था कि उनके पास इस बात के साक्ष्य हैं कि कुमार उन अधिकारियों में से एक थे, जिन्होंने इशरत से उस समय पूछताछ की थी, जब गुजरात पुलिस ने उसे कथित रूप से अवैध हिरासत में लिया था। खबर है कि कुमार से लंबी पूछताछ की गयी थी। रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने यह खुफिया खबर दी थी कि लश्कर आतंकवादियों का एक समूह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए अहमदाबाद आ रहा है। मामले में लगभग सभी आरोपियों को अदालत से जमानत मिल गई है। आईपीएस अधिकारी डी जी वंजारा और पीपी पाण्डेय को फरवरी में जमानत दी गई। एक अन्य आरोपी एन के अमीन को गुजरात के गृह विभाग ने बहाल कर दिया है। मुठभेड़ में इशरत जहां, उसका मित्र प्राणेश पिल्लै उर्फ जावेद शेख तथा दो संदिग्ध पाकिस्तानी अमजद अली राणा और जीशान जौहर को गुजरात पुलिस की अपराध शाखा के अधिकारियों ने मार गिराया था। उस समय अपराध शाखा का दावा था कि चारों लश्कर ए तैयबा के सदस्य थे, जो मुख्यमंत्री मोदी को मारने के इरादे से गुजरात आए थे।

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