कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त ने कहा कि वह इस लोक धारणा से पूरी तरह सहमत हैं कि धनी और प्रभावशाली कानून के चंगुल से बच जाते हैं। हेगड़े ने कहा, मैं विभिन्न मंचों से कहता रहा हूं कि दो उदाहरणों से न्यायपालिका की छवि खराब हुई...पहला जयललिता का (आय से अधिक संपत्ति) मामला है जिसमें 14 साल के बाद उनकी दोषसिद्धि हुई और कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली लेकिन जमानत नहीं दी। वे लोग उच्चतम न्यायालय गए। न सिर्फ (कुछ दिनों के अंदर ही) जमानत दे दी गई...मैं जमानत दिए जाने का विरोध नहीं कर रहा हूं...बल्कि उच्च न्यायालय को निर्देश था कि तीन महीनों के अंदर मामले का निपटारा किया जाए। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत जेल में सैंकड़ों लोग पड़े हैं जिन्हें जमानत नहीं मिली है और उनकी जमानत याचिका पर 4-5 साल बाद सुनवाई होती है।
उन्होंने कहा, इसी प्रकार सलमान खान का मामला है जिनकी भी 14 साल बाद पहली अदालत में दोषसिद्धि हुई और उच्च न्यायालय ने एक घंटे के अंदर जमानत दे दी। ठीक है। जमानत देने में कोई गलती नहीं है और न्यायाधीश ने दो महीनों में सुनवाई की। दोनों (जयललिता और सलमान के मामलों में) अवकाश ग्रहण करने वाले न्यायाधीश हैं।
हेगड़े ने कहा कि अदालत को ऐसे मामलों में त्वरित सुनवाई करने की जरूरत है जैसे अगर किसी व्यक्ति को कल फांसी की सजा दी जानी है या अगले दिन परीक्षा है और छात्र को प्रवेश पत्र नहीं दिया गया हो। उन्होंने कहा, लेकिन इन मामलों में क्या अत्यावश्यकता थी...सिर्फ इसलिए कि धनी एवं प्रभावशाली होने के कारण उन्हें जमानत मिलती है और वे चाहते हैं कि उनके मामले की सुनवाई बिना बारी की हो। मैं इसका पूरी तरह से विरोध करता हूं और इन दोनों उदाहरणों की निंदा करता हूं।
उन्होंने कहा, लोगों ने सवाल करने शुरू कर दिए हैं...हमें बताइए कि इन (दोनों) मामलों में क्या इतना महत्वपूर्ण था कि आपने बिना बारी के इसकी सुनवाई की। निश्चित रूप से इससे गलत संदेश जाएगा कि धनी और प्रभावशाली लोगों के लिए अलग रास्ता है।