दिल्ली सरकार की मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुमार के खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल नहीं पाया गया और उपलब्ध किसी भी गवाह या वीडियो से जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के खिलाफ आरोप की पुष्टि नहीं होती है। कुमार को कल दिल्ली उच्च न्यायालय से मामले में छह महीने की अंतरिम जमानत मिल गई है। हालांकि जांच रिपोर्ट के अनुसार परिसर में राष्ट्र विरोधी नारेबाजी की गई थी और जेएनयू प्रशासन पहले ही उन कुछ चेहरों की पहचान कर चुका है जिन्हें साफ तौर पर नारे लगाते सुना गया। जांच समिति ने कहा कि उन लोगों का पता लगाया जाना चाहिए औैर उनकी भूमिका की जांच होनी चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार अफजल गुरू की फांसी के विरोध में नौ फरवरी को आयोजित किए गए कार्यक्रम के सात वीडियो हैदराबाद के फोरेंसिक लैब में भेजे गए थे। उनमें से तीन वीडियो में छेड़छाड़ पाई गई जिनमें से एक समाचार चैनल की क्लीपिंग है।
नई दिल्ली जिला मजिस्ट्रेट संजय कुमार के नेतृत्व में की गई जांच में कहा गया कि उमर खालिद कई वीडियो में देखा गया है और कश्मीर एवं गुरू के प्रति उनके समर्थन के बारे में पहले से जानकारी थी। इसमें कहा गया कि वह कार्यक्रम का आयोजक था और उसकी भूमिका की और जांच की जानी चाहिए। उमर और जेएनयू के एक और छात्र अनिर्बान भट्टाचार्य ने 24 फरवरी की रात को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था जिसके बाद उन्हें देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने जेएनयू के एक और छात्र आशुतोष कुमार से भी दो बार पूछताछ की है। दिल्ली सरकार ने कन्हैया की गिरफ्तारी को लेकर व्यापक आक्रोश पैदा होने के बाद गत 13 फरवरी को जांच का आदेश दिया था।
रिपोर्ट में जेएनयू के कुछ सुरक्षाकर्मियों के दावों का भी हवाला दिया गया जिन्होंने कहा था कि संभवत: उमर, अनिर्बान और आशुतोष ने गुरू की फांसी के खिलाफ और कश्मीर मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए भारत विरोधी नारेबाजी की। रिपोर्ट के अनुसार, उमर खालिद कार्यक्रम का मुख्य आयोजक था, उसे कश्मीर के आत्म निर्णय और अफजल गुरू को लेकर उसके रूख के लिए जाना जाता है। उसने पूर्व में भी इस तरह के कई कार्यक्रमों का आयोजन किया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि चेहरे ढके हुए कश्मीरी मूल के कई बाहरी लोगों को वीडियो में भारत विरोधी और अफजल गुरू के समर्थन में नारेबाजी करते देखा गया था जिनकी पहचान एवं भूमिका की जांच की जानी चाहिए।