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ग्राउंड रिपोर्ट/लखीमपुर खीरी हिंसा: मारे गए किसानों के परिवार का दर्द, हालात बयां करते नहीं रूक रहे आंसू

यह 4 अक्टूबर की हल्की सर्द सुबह थी। उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिले के तिकुनिया शहर की बाहरी बगल से खुलने...
ग्राउंड रिपोर्ट/लखीमपुर खीरी हिंसा: मारे गए किसानों के परिवार का दर्द, हालात बयां करते नहीं रूक रहे आंसू

यह 4 अक्टूबर की हल्की सर्द सुबह थी। उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिले के तिकुनिया शहर की बाहरी बगल से खुलने वाली उस दो कर्म (11फुट) की सड़क पर कुछ दूर चलते ही 4 पारदर्शी फ्रीज़ रखे हुए है। इन फ़्रीज़ों में गर्दन तक ढके उन किसानों के मृत शरीर हैं जो 3अक्टूबर को उसी जगह हुई एक हिंसक घटना में मारे गए। इन शवों के पास कुछ महिलाएं हैं जिनकी लाल पड़ गयी नम आंखें इस बात की गवाही दे रही हैं कि वे इस घटना के बाद आंखों से आंसू बहाने से रुकी नहीं, और न ही एक पल के लिए झपकीं।

एक बुजुर्ग किसान बार-बार परने से अपने आंसू पोंछ रहे हैं, लेकिन गीलापन दूर होने से पहले ही उनकी आंखों की कोर से दोबारा आंसू बह निकलते हैं। वो इस घटना में मारे गए किसान गुरविंदर सिंह के पिता हैं।

आसपास के किसान अपना सर झुका उन किसानों को अपना आखरी सलाम पेश कर बगल में खाली पड़े मैदान में जमा हो रहे हैं। एक ट्रैक्टर-ट्रॉली को तिरछा खड़ा करके सड़क को जाम कर दिया गया है।

जैसे-जैसे सूरज लाल हो रहा है वैसे वैसे किसानों की संख्या के साथ साथ मीडिया की गाड़ियों और पत्रकारों की तादात भी बढ़ रही है। किसान नेता और प्रशासन के बड़े अधिकारी इन शवों से कुछ दूर स्थित गुरु नानक देव सिख अकेडमी स्कूल के एक कमरे में मीटिंग कर रहे हैं। राकेश टिकैत, सुरेश कोथ और दूसरे किसान नेताओं अलावा इस इलाके के कुछ सिख नेता भी इस मीटिंग में शामिल हैं।

प्रशासनिक अधिकारी इस घटना में मारे गए किसानों के अंतिम संस्कार के लिए किसान नेताओं से बार बार विनती कर रहे हैं। वहां मौजूद किसानों के ही नहीं बल्कि अधिकारियों के चेहरे पर भी मायूसी है।

तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में हुई इस घटना में आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की कारों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को रौंद दिया था। घटनास्थल पर मौजूद गुरप्रीत सिंह ने बताया, "करीब तीन बजकर चालीस मिनट का समय था। किसान अपना विरोध प्रदर्शन खत्म घरों की तरफ लौटने लगे थे। इतने में अचानक पीछे से एक थार और एक फॉर्च्यूनर तेज़ स्पीड में आई और किसानों को रौंदते हुए आगे निकल गईं। किसानों को पता ही नहीं चला कि उनके साथ क्या हुआ। गाड़ियों के गुज़र जाने के बाद खून से लथपथ रौंदे गए किसान दर्द में करहा रहे थे। आगे पुलिस की एक बस और 40-50 पुलिस कर्मी बैरिकेडिंग किये हुए खड़े थे। जब उस गाड़ी में से मंत्री का बेटा उतरा तो पुलिस वाले उसको कवर करके गन्ने के खेतों की और ले गए। जब किसान उनके पीछे भागे तो आगे से उसने फायरिंग कर दी और वह इस घटना को अंजाम देकर भाग गया।"

वहां मौजूद किसान मीडिया से बात नहीं करना चाहते थे। बल्कि घटना की मीडिया कवरेज को लेकर भी गुस्से में थे। वहां मौजूद किसान सुखप्रीत ने मुझे बताया, "किसानों को एकतरफा रौंदने के इस मामले में भी मीडिया किसानों को उपद्रवी बता रही है। जबकि इस मामले में मंत्री के बेटे की गाड़ियों के नीचे एक पत्रकार भी कुचला गया है।" 

इस घटना में लखीमपुर के निघासन कस्बे के रहने वाले पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत हुई है। 35साल के कश्यप साधना न्यूज़ के लिए रिपोर्टिंग करते थे। तीन अक्टूबर को वह अपने इलाके के पत्रकारों के साथ प्रदर्शनकारी किसानों की कवरेज करने के लिए निघासन से तिकुनिया आये थे, लेकिन उस शाम वापस घर नहीं पहुंच पाए। उनके घर न पहुंचने पर परिवार को चिंता हुई और उनके पिता ने पुलिस को इसकी सूचना दी।

अगली सुबह (अक्टूबर) उनके पिता राम दुलार कश्यप को पुलिस ने उनके बेटे की मौत की खबर हुई। रमन की मौत की सूचना के याद से ही परिवार सदमे में है और देखते देखते निघासन कस्बे के लोग उनके पक्ष में जमा होने लगे। 

इस घटना के बाद दर्ज की गई एफआईआर में किसानों की मौत के आरोप में एफआईआर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र के ऊपर आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 279, 338, 302 और 120 बी के तहत दर्ज की गई है। लेकिन कश्यप परिवार पर किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने का दबाव बनाया जा रहा है। 

जब हम निघासन पहुंचे तो शहर के बीच चौक में कश्यप का परिवार और शहरवासी जमा थे। चौक में ही एक सफेद गाड़ी भी खड़ी थी जिसमें कश्यप का शव रखा हुआ था। वहां मौजूद उनके भाई पवन कश्यप ने हमें बताया, "पुलिस और इलाके के कई बड़े नामी लोग चाहते हैं कि हम रमन के नाम से किसानों के खिलाफ दर्ज एफआईआर दर्ज करवाएं। हमारे ऊपर लगातार यह दबाव बनाया जा रहा है कि हम यह बयान दें कि रमन को किसानों ने लाठी-डंडों से पीटकर मार डाला। वहां उस गाड़ी में मेरे भाई का शव रखा है, आप जाकर देख लीजिए रमन के शरीर पर रगड़ के निशान हैं।" बात करते-करते रमन के छोटे भाई पवन का गला रुंधने लगता है और वह लोगों की भीड़ में कहीं ओझल हो जाते हैं। 

रमन के पिता हर तरह के दबाव के बावजूद भी इस मामले में न्याय चाहते हैं। उन्होंने हमें बताया, "उसकी मौत जिसकी वजह से हुई उसी को बचाने के लिए हमारे ऊपर दबाव डाला जा रहा है। रमन के दो छोटे छोटे बच्चे हैं,अब उनका क्या होगा।" रामदुलार कश्यप एकदम से फुट-फूटकर रोने लगते हैं और एक टख उस सफेद वैन को देखने लगते हैं जिसमें उनके बेटे का शरीर रखा है। 

इस घटना के बाद ही लखीमपुर व आसपास के इलाकों मेम सरकार ने इंटरनेट सेवाएं बन्द कर दी थीं और जिले में पहले धारा 144 लगाई गई थी। लेकिन धारा 144 लगे होने के बावजूद भी इस इलाके के किसान बड़ी संख्या में तिकुनिया के उस खाली मैदान में जमा हो रहे थे, जिसके सामने सड़क पर मृत किसानों के शव रखे हुए थे। 

प्रशासन के साथ चली 6घंटे लम्बी मीटिंग का अंत उस दिन करीब एक बजे हुआ जब वह इलाका चारों और किसानों से भरा हुआ था। प्रशासन ने किसानों की अधिकतक मांगें मान लीं और एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसानों के साथ हुए समझौते का एलान किया गया। समझौते में घटना की हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज द्वार जांच,आरोपी की एक सप्ताह के भीतर गिरफ्तारी, मृतक किसानों के परिजनों को 45-45 लाख और घायलों को 10-10लाख रुपये का मुआवजा।

किसान नेताओं के साथ साझा प्रेस वार्ता में पुलिस अधिकारी ने कहा,”दोषियों पर अलग-अलग धाराओँ के तहत केस दर्ज किया गया है। दोषियों को दस दिन के भीतर गिरफ्तार किया जाएगा। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।” इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद सभी किसान अपने घरों की तरफ वापस लौटने लगे। प्रशासन के अधिकारी चाहते थे कि मृतकों का अंतिम संस्कार आज ही कर दिया जाए लेकिन ढलते दिन का हवाला देकर परिजनों ने अंतिम संस्कार के लिए मना कर दिया। 

अगली सुबह यानी 5अक्टूबर को लखीमपुर खीरी जिले के चौकड़ा फार्म इलाके में मुख्य सड़क से लेकर जान गंवाने वाले सबसे कम उम्र के नौजवान लवप्रीत सिंह के घर तक पुलिस बल की भारी तैनाती के बीच मीडियाकर्मी और किसान उनके घर के दालान में जमा हैं। घर के अंदर औरतों से घिरी उनकी अम्मी अपनी सुध बुध खो चुकी थीं। बहते आंसुओं के निशान उनकी मटियल खाल पर उभर आई थे। उनके पास बैठी उनकी दो बेटियां अपनी मां को संभाल रही थीं। 

दालान में कांच के ताबूत में रखे लवप्रीत के शव के आखरी दर्शन करने के लिए किसान और उनके रिश्तेदार जमा थे। उनका परिवार तब तक लवप्रीत का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहता था जब तक मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी न हो जाए। लवप्रीत की बहन अमनप्रीत कौर ने मुझे बताया, " हमें अपने भाई का इंसाफ चाहिए। हमें मदद की नहीं इंसाफ की जरूरत है।"  अमन की बायीं आंख की कौर से आंसू बह निकलता है।

लवप्रीत के रिश्तेदारों और किसान नेताओं के कहने पर उनके पिता भी उनके अंतिम संस्कार के लिए मान जाते हैं। लवप्रीत के खेत में खड़ी धान की फसल के कोने को हटाकर उनके अंतिम संस्कार के लिए जगह बना दी जाती है और सिख रीतिरिवाज़ों के साथ लवप्रीत के पिता उनके शरीर को अग्नि देते हैं और देखते देखते वह अपने खेत की मिट्टी में मिट्टी हो जाता है। 

उस दिन (5अक्टूबर) लवप्रीत के अलावा घटना में मारे गए किसान दलजीत सिंह, नछतर सिंह और पत्रकार रमन कश्यप का अंतिम संस्कार कर दिया गया, लेकिन इसी घटना में मारे गए किसान गुरविंदर सिंह का अंतिम संस्कार नहीं किया गया। 

गुरविंदर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहीं भी गोली लगने का जिक्र नहीं था, लेकिन घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों का मानना था कि गुरविंदर की मौत उनके सर में गोली लगने से हुई है। 

5 अक्टूबर की शाम लवप्रीत का अंतिम संस्कार हो जाने के बाद हम बहराइच जिले के मोहरानिया गांव में गुरविंदर के घर गए। गुरविंदर का घर भी मुख्य सड़क से करीब 4 किलोमीटर अंदर खेतों में था। वहां भी किसानों,पत्रकारों और पुलिस कर्मियों की भीड़ जमा थी। 

पूरा परिवार रो रोकर बेहाल था। गुरविंदर की बहन ने मुझे बताया, "हम जब तक अपने भाई का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे जब तक सही से उसका पोस्टमार्टम नहीं होता। उसको सर में गोली लगी लेकिन ये लोग एक्सीडेंट दिखा रहे हैं।" 

परिवार और किसान नेताओं की इस मांग के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और दूसरा पोस्टमॉर्टम 5अक्टूबर की रात को ही हुआ। जब दोबारा पोस्टमार्टम के लिए गुरविंदर को ले जाने लगे तो एक किसान नेता उनके भाई मस्कीम को आकर कहते हैं, "दोबारा पोस्टमार्टम होने के बाद सुबह जल्दी इनका अंतिम संस्कार कर देना, वरना बॉडी में कीड़े पड़ने का भी डर होता है।" 

हालांकि दूसरे पोस्टमार्टम में भी गोली लगने का खुलासा नहीं हुआ। अगली सुबह यानी 6 अक्टूबर को सुबह 7:30 बजे गुरविंदर का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

 

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