कश्मीर के लोगों का अब मानना है कि प्रदर्शन और नागरिक आंदोलन से सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यशवंत सिन्हा की अगुआई में कंसर्न्ड सिटीजंस ग्रुप (सीसीजी) ने कश्मीर दौरों के बाद अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। ग्रुप ने पिछले अगस्त में अनुच्छेद 370 हटने के बाद दो बार कश्मीर घाटी का दौरा किया।
घाटी में आतंकवाद के लिए जमीन तैयार
रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर में अब लोग सोच रहे हैं कि ऐसा क्या किया जाए जिससे सरकार पर असर पड़े। इस तरह सवाल घाटी में नए दौर के आतंकवाद के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। मोदी सरकार ने पिछले 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 हटाने के साथ उसे दो भागों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। इन फैसलों के साथ ही सरकार ने हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया और संचार माध्यमों के साथ लोगों की आवाजाही पर भी प्रतिबंध लगा दिए।
कश्मीर में हुए दो दौरे
सीसीजी के दल ने पहला दौरा 17 सितंबर को किया था जब यशवंत सिन्हा की अगुआई में पूर्व एयर वाइस मार्शल कपिल काक, सुशोभा भारवे और भारत भूषण ने दौरा किया था। कश्मीर में ही रहने वाले ग्रुप के एक अन्य सदस्य वजाहत हबीबुल्लाह ने भी इसमें शिरकत की थी। लेकिन सिन्हा को श्रीनगर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई। दूसरा दौरा 22 नवंबर से 26 नवंबर के बीच हुआ।
सरकार के कदम से आतंकियों को बढ़ावा
कश्मीर के हालात पर ग्रुप ने कहा है कि कश्मीरी मानते हैं कि भारत में वैचारिक आग्रह इस समय बहुत ज्यादा है। ऐसे में किसी बदलाव की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। इससे जम्मू कश्मीर में उग्रवादी तत्वों को बढ़ावा मिल रहा है। वे कहने लगे हैं कि उनकी आशंकाएं सही साबित हुई हैं। आतंकियों और पूर्व आतंकियों का कहना है कि नरेंद्र मोदी तो उनके सहयोगी है क्योंकि संघर्ष के लिए रेखा खींच दी है।
लेकिन पाक मदद देने से हिचकिचा रहा
रिपोर्ट के अनुसार आतंकवाद को मान्यता उस समय मिल रही है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में सशस्त्र संघर्ष में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है क्यों कि वह फाइनेंशियल एक्शन टास्ट फोर्स (एफएटीएफ) पर पालन करने में ढिलाई और मनी लांड्रिंग और टेरर फंडिंग के लिए पहले ही फंस चुका है।
हत्याओं को भी सही मानने लगे लोग
रिपोर्ट के अनुसार यहां आत्मघाती माहौल दिखाई दे रहा है। कश्मीर के कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर ग्रुप को बताया कि अब प्रतिष्ठित परिवारों के सदस्य भी आंतकवाद में शामिल हो रहे् हैं। वे कहते हैं कि भारत से कोई उम्मीद नहीं बची है। अब लोग शांत रहने के बाद भी लोग निर्दोष ट्रक ड्राइवरों और पांच गैर कश्मीर मुस्लिम कर्मचारियों की आतंकियों द्वारा हत्याओं को सही मानने लगे हैं। कश्मीर में युवा है जो कहते हैं कि जब हम 1990 में हथियार उठा सकत हैं तो फिर से ऐसा कर सकते हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय माहौल, पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति और कश्मीर के बुजुर्ग लोग इन युवाओं को रोके हुए हैं।
आतंकियों के मददगारों की कमी नहीं
सीसीजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि कश्मीर में जमीनी स्तर पर अतिवादी तत्व मौजूद है लेकिन इस समय की स्थितियों के चलते वे बहुत कुछ करने में सक्षम नहीं हैं। एक युवा कहता है कि पाकिस्तान की जवह से आतंकवाद रुका हुआ है। सिर्फ शोपियां में ही सैकड़ों जमीनी कार्यकर्ता मौजूद है जो आतंकियों के लिए मुखबिरों की तरह काम करते हैं। उनके पास हथियार नहीं है। अगर उन्हें हथियार मिल जाएं तो वे खुशी-खुशी आतंकवाद में कूद पड़ेंगे। लेकिन पाकिस्तान की ओर से मदद नहीं दी जा रही है। इस समय आतंकियों के पास न तो पैसा है और न ही हथियार।