नेट न्यूट्रैलिटी पर भारतीय दूरसंचार प्राधिकरण (ट्राई) ने मुहर लगा दी है। एक साल से ज्यादा समय तक विचार-विमर्श करने के बाद ट्राई ने मंगलवार को इस संबंध में अपनी सिफारिशें जारी की। इसके मुताबिक इंटरनेट सेवाएं उपभोक्ताओं को बिना किसी भेदभाव के मिलनी चाहिए। इसकी निगरानी के लिए एक बहुपक्षीय संस्था बनाने का सुझाव ट्राई ने दिया है। इसमें दूरसंचार और इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों के अलावा कॉन्टेंट प्रोवाइडर, नागरिक संगठन और उपभोक्ताओं के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए।
सिफारिशों में कहा गया है कि दूरसंचार कंपनियों अाैर किसी संस्था में कॉन्टेंट तक पहुंच के साथ भेदभाव करने वाले समझौताें पर पाबंदी लगनी चाहिए। ट्राई के मुताबिक दूरसंचार या इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों द्वारा किसी सामग्री को रोकना, उसे कमजोर करना, उसकी रफ्तार घटाना या अन्य के मुकाबले किसी सामग्री को ज्यादा तरजीह देना सामग्री के साथ भेदभाव करने के दायरे में आएगा। इस पाबंदी को सख्ती से लागू करने के लिए कंपनियों की लाइसेंस शर्तों में बदलाव का भी प्राधिकरण ने समर्थन किया है।
नेट न्यूट्रैलिटी पर दूरसंचार और ऐप प्रदान करने वाली कंपनियों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। ट्राई की सिफारिशें ऐसे समय में आई हैं जब इस मसले पर दुनिया भर में बहस छिड़ी हुई है। हाल में अमेरिकी नियामक फेडरल कम्यूनिकेशंस कमीशन ने कहा है कि वह 2015 में अपनाए गए नेट न्यूट्रैलिटी के नियमों को वापस लेने की योजना बना रहा है। इस पर दिसंबर में मतदान होना है।
भारत में फिलहाल नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर कोई कानून नहीं है। कानून के अभाव में दूरसंचार कंपनियां मनमानी कर रही हैं। कानून बनने पर इंटरनेट सेवा देने वाली कोई कंपनी किसी खास वेबसाइट या सेवा के लिए इंटरनेट की स्पीड न तो घटा और न बढ़ा पाएगी। इसके अलावा इंटरनेट के अलग-अलग इस्तेमाल के लिए अलग-अलग कीमतें भी तय नहीं की जा सकेंगी।