सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं की साफ राय है कि अभी इसे संवैधानिक संकट नहीं कहा जा सकता क्योंकि मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने एक महीने के अंदर मामले में कोई न कोई व्यवस्था देने की बात कही है इसलिए तब तक लोगों को धैर्य रखना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा रखना चाहिए।
गौरतलब है कि उच्चतर न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त कर सरकार ने नया राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून बनाया है जिसके तहत हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की सारी नियुक्तियों में सुप्रीम कोर्ट का एकाधिकार खत्म कर दिया गया है। इस कानून को लेकर पूरे देश में गहरे मतभेद उभर आए हैं। संसद के अलावा 20 राज्यों की विधायिका ने इस कानून को मंजूरी दी है और न्यायपालिका में भी एक खेमा इस कानून का समर्थन कर रहा है जबकि दूसरा खेमा इसके खिलाफ है और इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर राजनेताओं के हमले की तरह देख रहा है। दरअसल इस कानून को बनाने में कुछेक को छोड़कर देश की तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियां एकजुट थीं। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन जहां कानून के पक्ष में है वहीं सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन इसके खिलाफ है और इसी एसोसिएशन ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी है। एसोसिएशन के मामले की पैरवी देश के जाने माने कानूनविद फली एस नरीमन कर रहे हैं।
इस कानून के तहत जजों की नियुक्ति के लिए जो छह सदस्यीय आयोग बनेगा उसमें सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के अलावा दो वरिष्ठतम जज, दो महत्वपूर्ण हस्तियां और देश के कानून मंत्री शामिल होंगे। दो महत्वपूर्ण हस्तियों को चुनने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाना है जिसमें प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष (नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा में विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता) के अलावा देश के प्रधान न्यायाधीश को शामिल होना है।
इसी कमेटी में शामिल होने से अभी न्यायमूर्ति दत्तू ने यह कहते हुए मना कर दिया है कि चूंकि कानून की समीक्षा हो रही है इसलिए फिलहाल वह इसमें शामिल नहीं होंगे। कानूनी जानकारों का एक खेमा यह तर्क दे रहा है कि चूंकि एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित या खारिज नहीं किया है इसलिए प्रधान न्यायाधीश इसमें शामिल होने से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि यह कानून का उल्लंघन है। उनके बिना संबंधित कमेटी दो महत्वपूर्ण हस्तियों का चयन नहीं कर सकती तो इसका अर्थ यह हुआ कि एनजेएसी का गठन ही अटक जाएगा।
चूंकि नए कानून के आने से कॉलेजियम व्यवस्था खत्म हो चुकी है इसलिए न्यायपालिका में नई नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक नहीं हो पाएंगी। अब स्थिति यह है कि अगले महीने में सात उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति और 11 अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी करने या उन्हें इसी पद पर काम करने देने का फैसला लिया जाना है। अगर नियुक्ति आयोग का गठन नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर अभी किसी संकट की बात नहीं मानते। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक महीने के अंदर इस मामले का कोई न कोई समाधान देने की बात कही है ऐसे में हमें उनपर भरोसा रखना चाहिए।