गौरतलब है कि संप्रग सरकार द्वारा जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में शामिल करने और इसके आधार र केंद्रीय भर्तियों में आरक्षण देने के फैसले को इस वर्ष 17 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। इन आवेदकों की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस मसला पहले ही निपटाया जा चुका है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और रोहिंग्टन एफ नरीमन की पीठ ने कहा कि यदि किसी भी व्यक्ति को नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया है तो हमारा फैसला लागू होगा। कुछ आवेदकों की ओर से पेश होने वाली वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि इन अभ्यर्थियों ने प्रवेश परीक्षा के अलग-अलग चरण में कामयाबी हासिल की थी मगर उसके बाद यह फैसला (आरक्षण रद्द करने का) आ गया। उन्होंने कई फैसलों का उद्धरण देते हुए कहा कि इस फैसले को दूरदर्शिता पूर्ण तरीके से लागू किया जा सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि यह मसला अदालत के निर्देश के बाहर नहीं जा सकता।
गौरतलब है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा जाट आरक्षण लागू करने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसे खारिज करने के बीच के समय में इन जाट आवेदकों ने बैंक पीओ परीक्षा पास की मगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट मेडिकल और डेंटल के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सफल हुए अभ्यर्थियों की ऐसी ही एक याचिका खारिज कर चुका है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि आरक्षण लागू रहने के दौरान जो प्रक्रिया पूरी हो गई है उसे लागू रहने दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि चूंकि जाटों को आरक्षण का अधिकार ही नहीं है इसलिए आरक्षण के तहत उनके दाखिले या सफलता को मान्यता नहीं दी जा सकती।