कुंदन शाह 'जानो भी दो यारो' जैसी यादगार फिल्म और 'नुक्कड़' जैसा मशहूर धारावाहिक बना चुके हैं जबकि सईद मिर्जा अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, मोहन जोशी हाज़िर हो और नसीम जैसी फिल्मों के अलावा सीरियल नुक्कड का निर्देशन कर चुके हैं। कुंदन शाह ने 1983 में मिला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार लौटाने की घोषणा करते हुए केंद्र की भाजपा सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाया है। शाह के मुताबिक, आज के माहौल में 'जानो भी दो यारो' जैसी फिल्म बनाना मुमकिन नहीं है। पुरस्कार लौटाने वाले 24 फिल्मकारों में वीरेंद्र सैनी, रंजन पालित, तपन बोस, श्रीप्रकाश, संजय काक, प्रदीप कृष्ण, तरुण भरतिया, अमिताभ चक्रवर्ती, मधुश्री दत्ता, अनवर जमाल, अजय रैना, इरीन धर मलिक, पीएम सतीश, सत्यराय नागपाल, मनोज लोबो, रफीक इलियास, सुधीर पलसाने, विवेक सच्चिदानंद, सुधाकर रेड्डी यक्कांति, डॉ मनोज निथारवाल, अभिमन्यु डांगे शामिल हैं।
प्रसिद्ध लेखिका और उपन्यास 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' के लिए बुकर पुरस्कार पाने वाली अरुंधति रॉय ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख के जरिये राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है। उन्हें 1989 में फिल्म In Which Annie Gives It Those Ones के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले का नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्होंने लिखा है कि आज पूरी जनता - लाखों दलित, आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई आतंक में जीने को मजबूर हैं। हमेशा यही डर रहता है कि न जाने कब-कहां से हमला हो जाए। हालांकि, उन्हें इस बात का अंदाजा था कि आगे क्या होने वाला है इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता है कि इस सरकार के भारी बहुमत से सत्ता में आने के बाद जो कुछ हो रहा है उससे वह अचंभित हैं। पुरस्कार वापसी के बारे में अरुंधति रॉय ने कहा कि कलाकारों और बुद्धिजीवियों की यह राजनैतिक मुहिम एेतिहासिक है। ये लोग वैचारिक क्रूरता और सामूहिक बौद्धिकता पर हो रहे हमले के खिलाफ खड़े हुए हैं। उन्हें खुशी है कि उनके पास एक राष्ट्रीय अवार्ड है जिसे लौटाकर वह इस आंदोलन का हिस्सा बन सकती हैं।
अभी खड़े नहीं हुए तो दफना दिए जाएंगे: अरुंधति रॉय
अरुंधति रॉय ने लोगों को पीट-पीटकर, जलाकर, गोली चलाकर मार दिए जाने और जनसंहार की घटनाओं के लिए ‘असहिष्णुता’ (इनटोलरेंस) शब्द के इस्तेमाल को गलत बताया है। उनका कहना है कि ये क्रूर हत्याएं बदतर स्थिति का संकेत हैं। अगर हम इसके खिलाफ अभी खड़े नहीं हुए तो हमें खंड-खंड कर बहुत गहरे दफना दिया जाएगा।
कांग्रेस राज में लौटाया था साहित्य अकादमी पुरस्कार
पुरस्कार लौटाने वाले लोगों पर कांग्रेसपरस्ती के आरोपों के जवाब में अरुंधति रॉय ने लिखा है कि 2005 में जब कांग्रेस सरकार में थी, तब उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार भी ठुकरा दिया था। इसलिए कृपा कर उन्हें कांग्रेस बनाम भाजपा की पुरानी बहस में न घसीटा जाए। यह बात अब काफी आगे निकल चुकी है।