बृहस्पतिवार को सैकड़ों की तादाद में छात्रों ने यूजीसी मुख्यालय से लेकर मंत्रालय तक मार्च निकाला और सरकार को अपनी एकजुटता का अहसास करा दिया। इस आंदोलन को जेएनयू, जामिया और डीयू जैसी यूनिवर्सिटी और कई संगठनों के छात्रों का समर्थन मिल रहा है। स्वराज अभियान के नेता और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व सदस्य योगेंद्र यादव ने भी छात्रों की मांगों का समर्थन करते हुए मार्च में हिस्सा लिया।
मंत्रालय के बाहर प्रदर्शनकारी छात्रों के हुजूम को देखते हुए स्मृति ईरानी को उनके बीच आना पड़ा। छात्र प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में उन्होंने सरकार के रुख को दोहराया कि फेलोशिप समाप्त नहीं की जाएगी और हाल ही में गठित पांच सदस्यीय समिति अनुदान के मानदंडों की समीक्षा करेगी। दरअसल, छात्रों का विरोध इसी समीक्षा समिति और नॉन-नेट फेलोशिप के मानदंड तय करने को लेकर है। आंदाेलनकारी छात्रों का कहना है कि जब विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा के जरिए ही एमफिल व पीएचडी में दाखिले देते हैं तो फेलोशिप के लिए अलग से मापदंड अपनाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। शोध करने वाले सभी छात्रों फेलोशिप दी जाए। यही वजह है कि मानव संसाधन विकास मंत्री से मुलाकात के बाद भी गतिरोध बना हुआ है और छात्रों का आंदोलन जारी है।
जेएनयू छात्र संघ उपाध्यक्ष शहला राशिद ने कहा, हम 17 दिन से प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर सरकार कहती है कि फेलोशिप को बंद नहीं किया गया है तो फैसले की समीक्षा करने जरूरत क्यों पड़ी। हम समीक्षा समिति को भंग करने की मांग करते हैं। #OccupyUGC अभियान की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, छात्रों के विरोध के चलते स्मृति ईरानी को मंत्रालय से निकलकर बाहर आना पड़ा और प्रदर्शनकारी छात्रों से बात करनी पड़ी। ईरानी ने भरोसा दिलाया है कि नॉन-नेट फेलोशिप को बंद नहीं किया जाएगा, इसका फायदा राज्यों के विश्वविद्यालयों में भी मिलेगा और फेलोशिप के तहत मिलने वाले अनुदान को बढ़ाया जाएगा। लेकिन फेलोशिप किसे मिलेगी इसके लिए एचआरडी मंत्री मापदंड तय करने की व्यवस्था पर कायम हैं। इससे स्पष्ट है कि सरकार सभी छात्रों को फेलोशिप देने वाली नहीं है और बड़ी संख्या में छात्रों के लिए फेलोशिप बंद करने जा रही है। आर्थिक या मेरिट के आधार पर छात्रों को फेलोशिप से वंचित रखना ही मंत्रालय की ओर से बनाई गई समीक्षा समिति का मुख्य एजेंडा प्रतीत होता है।
आरोप हैं कि दिसंबर में कीनिया में होने वाली डब्ल्यूटीओ-गेट्स बैठक से पहले सरकार छात्रवृत्तियों में कटौती, फीस में बढ़ोतरी आदि के जरिए शिक्षा के निजीकरण की तरफ तेजी से कदम बढ़ाने के संकेत देना चाहिए। इसलिए वास्तव मांगे पूरी होने तक #OccupyUGC आंदोलन जारी रहेगा।