पानी की त्राहि-त्राहि में छत्तीसगढ़ भी पीछे नहीं है। सभी चाहते हैं सरकारें कुछ करें। लेकिन क्या सिर्फ सरकारों के करने या निर्देश जारी करने से कुछ होता है, शायद नहीं। लेकिन छत्तीसगढ़ के एक सरकारी अधिकारी कई सालों से लोगों की प्रेरणा बने हुए हैं। आईएएस अफसर सोनमणि बोरा ने दुर्ग जिले में वृष्टिछाया नाम से एक अभियान चलाया था और बंद पड़े जलस्रोत फिर से अस्तित्व में आ गए। इसके तहत बेमेतरा जिले के साजा और बेमेतरा में ग्यारह सौ हैंडपंपों का संधारण हुआ और जनभागीदारी से लगभग 400 छोटे-छोटे बांधों और तालाबों के जीर्णोद्धार से जलस्तर ऊपर आ गया था। जल संवर्धन को लेकर बोरा हमेशा उत्सुक रहते हैं।
वह कहते हैं, 'पानी बचाने के लिए व्यापक स्तर पर अभियान चलाए जाने की जरूरत है। उसमें भी यदि जनभागीदारी हो तो सोने पर सुहागा।’ रायपुर के नगर आयुक्त रहते हुए उन्होंने रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया था। बिलासपुर में उनके रहते सन 1928 में बिलासपुर जिले में बने खूंटाघाट बांध की पहली बार डी सॉल्टिंग की गई थी। यह सन 2010 की बात है। अब इस बांध से 1 लाख 65 हजार हेक्टेयर की सिंचाई होती है। इसके लिए जनभागीदारी से 22 दिन में 75 हजार लोगों ने श्रमदान किया था जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री भी शामिल थे। बोरा के प्रयासों का ही नतीजा है कि कुछ इलाकों में अब पानी की समस्या नहीं है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव बोरा अब आंगनबाड़ी और युवाओं को शामिल कर जल संचय अभियान की शुरुआत करने वाले हैं। सरकार भी अपनी ओर से प्रयासरत है। पिछले साल की तरह इस बार भी निस्तारी के लिए राज्य के 2 हजार तीन सौ 47 गांवों के तीन हजार 868 तालाबों को पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में सूखे का सबसे अधिक प्रभाव दूरदराज के इलाकों में है। कवर्धा में महिलाएं पीठ पर बच्चों को बांधकर दूर-दराज से पानी लाने जाती हैं।