दिल्ली के लोदी गार्डन में देश के बड़े नेता, अधिकारी, राजनयिक, लेख-पत्रकार, खेल संस्थानों के पदाधिकारी, खिलाड़ी सहित सैकड़ों लोग अच्छे स्वास्थ्य की खातिर टहलने, दौड़ने, खुली हवा में बैठने आते हैं। सुबह से देश शाम तक बुजुर्ग, युवा, स्त्री–पुरुष, बच्चे यहां मिलते हैं। योग पखवाड़े के दौरान योगाभ्यास भी दिखता है। लंबी-चौड़ी सैरगाह होने के कारण दो-तीन ठिकानों पर पीने का पानी उपलब्ध रहता है। फिर भी कई खिलाड़ी या नियमित सैर करने वाले अपने साथ पानी की बोतल रखते हैं।
दिन में इक्का-दुक्का वैध-अवैध रूप से चाय या शीतल पेय, चना बेचने वाले भी चक्कर लगा लेते हैं। यदि पांच-सात किलोमीटर टहलने या दौड़ने वालों को पानी साथ रखने की जरूरत हो सकती है, तो कृपया निष्कर्ष निकालें- 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली खिलाड़ी क्या यह निवेदन कर सकती है कि कृपया उसे दौड़ के दौरान पानी की व्यवस्था न की जाए? महान भारत की राष्ट्रीय एथलीट एसोसिएशन ने सोमवार शाम एक विज्ञप्ति जारी कर यही दावा किया है कि ‘ओलंपिक की मैराथन स्पर्धा में शामिल खिलाड़ी ने ही ढाई किलोमीटर के बाद पानी की बोतल आदि की व्यवस्था नहीं करने को कहा है।’ फिर एसोसिएशन के एक पदाधिकारी टी.वी. चैनलों पर सफाई देने लगे कि ‘दौड़ के रास्ते में पानी की व्यवस्था की जिम्मेदारी रियो ओलंपिक आयोजन समिति की थी।’ ओलंपिक में अपनी जान पर खेलकर मैराथन में 42 किलोमीटर दौड़ लगाकर बेहोश हुई महिला खिलाड़ी ओपी जैशा ने इन दावों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि एथलीट एसोसिएशन ने न तो रास्ते में पानी का इंतजाम किया, न ही समुचित सुविधाएं जुटाई। यही नहीं एसोसिएशन ने उससे पहले यह भी कहा कि दौड़ के प्रशिक्षक (कोच) ने ही रास्ते में पानी न देने को कहा है। मतलब अपनी लापरवाही, मूर्खता और गड़बड़ियों से पल्ला झाड़कर एसोसिएशन लीपापोती कर रही है। जैशा ओलंपिक में अपनी दौड़ पूरी करने के बाद मैदान में फिनिश लाइन पर ही बेहोश हो गईं और तीन घंटे तक मूर्छित रही। यहां तक कि चिकित्सा केंद्र में एक पदाधिकारी ने उसके मृत होने की आशंका तक व्यक्त कर दी थी। यह तो पर्याप्त उपचार के बाद दो-चार दिनों में वह भारत वापस आने लायक हो गईं एवं संभवतः उसे कुछ महीने आराम की जरूरत हो।
यह घटना भारत के खेल संगठनों की दुर्दशा ही नहीं अव्यवस्था एवं धंधेबाजी की परिचायक है। खेल संगठनों में राजनीति, गुटबाजी, पक्षपात और भ्रष्टाचार हावी है। कई पदाधिकारी जोड़-तोड़ से बने हैं। खेल-खिलाड़ी के नाम पर संगठनों के पास करोड़ों रुपया आता है, जिसका उपयोग खिलाड़ियों पर कम पदाधिकारियों के सैर-सपाटों-मस्ती के लिए होता है। रियो आलंपिक में दो महिला खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत से दो पदकों के साथ भारत की प्रतिष्ठा बच गई, लेकिन अब खेल संगठनों और खेल व्यवस्था के लिए विभिन्न स्तरों पर गंभीरता से विचार-विमर्श के बाद कड़े आपरेशन की जरूरत होगी। सरकार, संसद, प्रतिष्ठित खिलाड़ी और खेल प्रशिक्षकों के साथ सामाजिक संगठनों को नए सिरे से खेलों के प्रोत्साहन, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेलों की तैयारी एवं प्रशिक्षण सुविधाओं को प्राथमिकता देनी होगी।