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लोकपाल नियुक्त नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई निराशा

सुप्रीम कोर्ट ने संसद द्वारा जनवरी 2014 में कानून पारित किए जाने के बावजूद केंद्र द्वारा अभी तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं करने पर आज निराशा व्यक्त की। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष केंद्र ने दलील दी कि विपक्ष के सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता को चयन समिति में शामिल करने के लिए संसद में संशोधन विधेयक लंबित है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कानून में संशोधन नहीं करके संसद लोकपाल की नियुक्ति के प्रावधान को निरर्थक नहीं कर सकती है।
लोकपाल नियुक्त नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई निराशा

पीठ ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से जानना चाहा कि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को चयन समिति में शामिल करने के लिए न्यायालय आदेश क्यों नहीं दे सकता है। अटार्नी जनरल ने पीठ से कहा कि मौजूदा हालात में न्यायालय द्वारा पारित कोई भी आदेश न्यायिक तरीके से कानून बनाने जैसा होगा। उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में निर्देश प्राप्त करके न्यायालय को सूचित करेंगे। इस पर पीठ ने मामले की सुनवाई सात दिसंबर के लिए स्थगित कर दी।

इससे पहले, गैर सरकारी संगठन कामन काज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद लोकपाल बिल पारित किया गया था लेकिन अब सरकार कुछ नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि 2014 में कानून अधिसूचित होने के बावजूद हमारे पास आज भी लोकपाल नहीं है। यहां तक कि विधिवेत्ता की भी नियुक्ति नहीं हुई है और जनता हताश हो रही है। क्या आप एक और अन्ना आन्दोलन चाहते हैं? भूषण ने कहा कि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को प्रतिपक्ष के नेता के रूप में मान्यता देने के लिए शीर्ष अदालत को लोकपाल कानून की व्याख्या करनी होगी।

इस पर रोहतगी ने कहा कि कानून के प्रावधानों के अनुसार संसद में प्रतिपक्ष के नेता पद का दावा करने के लिए सबसे बड़े विपक्षी दल के पास एक निश्चित संख्या में सांसद होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इसीलिए सरकार कानून में संशोधन कर रही है ताकि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को लोकपाल की नियुक्ति हेतु चयन समिति में शामिल किया जा सके। अटार्नी जनरल ने कहा कि संशोधन विधेयक संसद में लंबित है और इसे पारित करने में कुछ समय लगेगा। इस मामले में अस्थायी स्थिति नहीं हो सकती है।

इस पर भूषण ने कहा कि यह राजनीतिक चालबाजी है और कोई लोकपाल नियुक्त नहीं किया जाएगा। यह राजनीतिक इच्छा का अभाव है। आप मेरे शब्दों को नोट कर लीजिये। वे यह विधेयक कभी पारित नहीं करेंगे। न्यायालय को विधिवेत्ता का चयन करने के लिए पहली बैठक करने का निर्देश देना चाहिए।

शीर्ष अदालत  ने कहा कि प्रतिपक्ष के नेता के बगैर भी कार्यवाही की जा सकती है। यदि कोई प्रतिपक्ष का नेता नहीं है तो चयन समिति में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को शामिल किया जा सकता है। इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि यही तो हम कहते आ रहे हैं। इम कानून में बदलाव कर रहे हैं और समिति में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को शामिल करने के लिए विधेयक संसद में लंबित है।

भूषण ने कहा कि समस्या का समाधान करना होगा वरना राजनीति दल जनता की आकांक्षाओं को कुचल देंगे। उन्होंने अटार्नी जनरल की इस दलील का भी जवाब दिया कि संसद को संशोधन विधेयक पारित करने के लिए कहने का मतलब न्यायिक तरीके से कानून बनाना होगा उन्होंने कहा कि न्यायालय सदन के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है।

उन्होंने कहा, यदि ऐसा कुछ, जो संसद से बाहर है तो इस संबंध में न्यायालय निर्देश दे सकता है कि समयबद्ध तरीके से समिति की बैठक होनी चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि अभी हमारे पास पिछले ढाई साल से प्रतिपक्ष का नेता नहीं है और संभव है कि अगले ढाई साल तक हमारे पास प्रतिपक्ष का नेता नहीं होगा। चूंकि ऐसा होने की संभावना नहीं है, तो कोई प्रतिपक्ष का नेता नहीं होगा। ऐसी स्थिति में क्या आप कानून को निष्प्रभावी होने देंगे क्योंकि कोई प्रतिपक्ष का नेता नहीं है। सार्वजनिक जीवन में शुचिता के लिए काम करने वाली ऐसी संस्था को निष्प्रभावी नहीं रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह संस्था इस तरह नहीं चलेगी।

इस पर अटार्नी जनरल ने जानना चाहा कि न्यायालय ऐसा क्यों मान रहा है कि संसद संशोधन विधेयक पारित नहीं करेगी। यह संसद ही है जो इसके पक्ष में थी और जिसने लोकपाल विधेयक पारित किया था। (एजेंसी)

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