भीड़ ने 21 अप्रैल 2010 को मिर्चपुर के कुछ घरों को निशाना बनाया जिसमें 70 वर्षीय ताराचंद तथा उनकी शारीरिक रूप से अशक्त बेटी सुमन जिंदा जल गए थे। इस हमले में 52 लोग घायल हुए जबकि 18 घर क्षतिग्रस्त हो गए थे। जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ड्यूटी मजिस्ट्रेट और पुलिस घटना मिर्चपुर हिंसा को रोकने में नाकाम रहे। यह रिपोर्ट राज्य सरकार को करीब एक साल पहले ही सौंप दी गई थी। लेकिन इसे हरियाणा विधानसभा के मौजूदा सत्र में शुक्रवार को सदन के पटल पर रखा गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि दलितों और प्रभावशाली जाट समुदाय के बीच कहासुनी के बाद तनाव पैदा हुआ था। लेकिन पुलिस गांव में स्थिति की गंभीरता को समझने और उचित कार्रवाई करने में नाकाम रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तैनात पुलिसकर्मियों में से कुछ के पास स्वचालित राइफलें थीं, लेकिन वे घटनास्थल से भाग गए। इससे भीड़ को घरों को जलाने का मौका मिल गया। अगर नारनौल के पुलिस अधिकारी पर्याप्त बल तैनात करते और एहतियाती कदम उठाते तो इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से बचा जा सकता था। ड्यूटी मजिस्ट्रेट की भूमिका के बारे में आयोग ने कहा कि वह भी अपने कर्तव्य का पालन करने में नाकाम रहे। एेसी स्थिति में ड्यूटी मजिस्ट्रेट को लाठीचार्ज, वाटर कैनन का इस्तेमाल और हवा में गोलीबारी करने का आदेश देना चाहिए था। एेसा प्रतीत होता है कि भीड़ पर काबू करने के लिए एेसे किसी उपाय का सहारा नहीं लिया गया।
आयोग की जांच रिपोर्ट पीड़ितों, प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय ग्रामीणों सहित कई लोगों के बयानों पर आधारित है। यह मुद्दा संसद में भी उठा था।